‘‘शिक्षा और नागरिकता’’ विषय पर संवाद आयोजित

दिनांक 4 फरवरी, 2018। बीकानेर
अध्यापन करना एक कला है जिसको कलाकार की तरह समझना चाहिए। एक कलाकार ही एक चित्र को अपने ढंग से समझकर उसको कई रूप दे सकता है। यह विचार थे पद्मश्री प्रो. अनिल गुप्ता के। प्रो. गुप्ता अजित फाउण्डेशन द्वारा आयोजित संवाद श्रृंखला के तहत ‘‘शिक्षा और नागरिकता’’ पर बोलते हुए कहा कि विज्ञान को प्रजातांत्रिक होना चाहिए, हमें एकाधिकार से विकेन्द्रिय विकास की तरफ जाना चाहिए। उन्होंने समाज के साथ मिलकर किए गए छोटे-छोटे आविष्कारों के बताते हुए कहा कि हमने भारत के कुम्हार तथा साइबेरिया के कुम्हारों की आपस में चर्चा करवाई। इस चर्चा में साइबेरियिन कुम्हारों ने कहा कि अगर आप मिट्टी के घड़े को तैयार करने में थोड़े से दूध का उपयोग करेंगे तो उसमें हम किसी पौधे के बीज रखेगे तो वह कभी खराब नहीं होंगे। इस प्रकार बौद्धिक सम्पदा को आदान प्रदान हर स्तर पर होना जरूरी है। आज हो रहा यह है कि असली ज्ञान जो हमारे समाज के आम नागरिकों के दिमाग में उसको बुद्धिजिवी प्राप्त कर स्वयं अपने नाम से वाह-वाह लूट रहे है, इससे आमदनी कर रहे है, पुरस्कार प्राप्त कर रहे है लेकिन जिससे उसने इस ज्ञान को प्राप्त किया है उसका कहीं पर भी नाम नहीं होता है। वैज्ञानिक सोच वहीं है जो हमें परिष्कृत कर सके।
उन्होंने बताया कि शिक्षा, समाज और सीखने के लिए अच्छा नागरिक होना जरूरी है। और अगर हम शिक्षित है तो हमारी जिम्मेवारी और अधिक बढ़ जाती है कि हम अच्छे नागरिक हो अन्यथा हमारी विद्ववता किसी काम की नहीं। हमें अनौपचारिक ज्ञान एवं अनौपचारिक विज्ञान के बीच में एक पुल बनाना होगा। देश के कई हिस्सों में जाने का मौका मिला वहां के गांववालों से बातचीत करने का अवसर प्राप्त हुआ। वहां जब हम बातचीत करते है तो हमें ऐसी कई नई खोजो के बारे में पता चलता है जिसको हमने पहले कभी नहीं देखा और न ही सुना, लेकिन वह हमारे इर्दगिर्द के वातावरण में मौजूद थी।
प्रो. गुप्ता ने बताया कि वह छोटे-छोटे बच्चों के साथ इस प्रकार की कार्यशालाएं करते है जिसमें बच्चों की सोच पर कार्य किया जाता है तथा वहां से नवसृजन की शुरूआत होती है। उन्होंने अपनी बात समाप्त करते हुए कहा कि समाज स्तर पर चिन्तन की आवश्यकता है। शोध को शोद्य शालाओं तक सीमित नहीं रखे। और जब हम बदलाव की बात करते है तो सर्वप्रथम हमें बदलना होगा।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए पदमभूषण प्रो. विजयशंकर व्यास ने कहा कि अध्यापक की क्या जिम्मेवारी होनी चाहिए और उसे जिम्मेवारी को वह किस प्रकार से निभाता है यह ज्यादा महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि हमें लोगो की बुद्धि, कृतित्व एवं इनोवेशन पर विश्वास करना ताकि उनको भी एक मंच मिल सके। लोगो के पास क्षमता है लेकिन उसको परिष्कृत करने की जिम्मेवारी वैज्ञानिकों की है। समाज में गुणों की कमी नहीं है, गुण ग्राहय की कमी है।
कार्यक्रम के अंत में संस्था उपाध्यक्षया श्रीमती लक्ष्मी देवी व्यास एवं अध्यक्ष प्रो. विजयशंकर व्यास ने प्रो. अनिल गुप्ता का शॉल ओढाकर सम्मान किया। मंच संचालन संजय श्रीमाली ने किया तथा धन्यवाद शैलेन्द्र व्यास ज्ञापित किया।

संजय श्रीमाली
कार्यक्रम समन्वयक
अजित फाउण्डेशन

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