सोशल मीडिया- समाज के हाथ में नया हथियार

media-अरविन्द विद्रोही- मेरे नजरिए से सोशल मीडिया समाज के लिए एक हथियार व समाज के अधिसंख्य मठाधीशों- प्रभावी लोगों के लिए अभिशाप बनकर उभरा है। सोशल मीडिया के दस्तक काल में स्थापित मीडिया (प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक ) के तमाम स्वनामधन्य सम्पादकों/ पत्रकारों/ मठाधीशों ने इसके महत्व को नाकारा था। सच कहें तो वे समझ ही नहीं पाये थे कि सोशल मीडिया एकाएक इतना प्रभावी हो जायेगा कि उनको भी इसकी शरण में आकर इससे अपनी कलम की धारा, ख़बरें-विचार निर्धारित करने पड़ेंगे।
स्थापित मीडिया के लिए चुनौती बनकर उभरा न्यू मीडिया यानि सोशल मीडिया अपनी जगह बना चुका है। स्थापित मीडिया में पत्रकार-संपादक की कलम व इच्छा के सामने पाठक-श्रोता बेबस हो चुका था, वो सिर्फ पढ़-सुन सकता था। उसकी प्रतिक्रिया उन कानों तक नहीं पहुँचती थी, उसकी लिखित प्रतिक्रिया पर पत्रकार-संपादक की नजर पड़ना या ना पड़ना अनिश्चित ही था, तवज्जो मिलना तो खैर अलग ही बात है। लेकिन सोशल मीडिया ने इस स्थापित एकाधिकार को तहस-नहस कर दिया है। आज समाज व मीडिया के धुरंधर भी सोशल मीडिया पर समाज के अनजाने व्यक्तियों की लिखी बातों, प्रतिक्रियाओं से सोचने को मजबूर हो रहे हैं, दबाव में भी आ रहे हैं। जिनका मीडिया में एकाधिकार था, समाज को जो विचार-खबर देते आ रहे थे, जिनकी विचारों की आम जन में ग्राहता है या नहीं इसका कोई पैमाना नहीं था सिर्फ छपने-दिखने-बोलने के कारण उनका मोल था आज वो सोशल मीडिया पर आम जनता के द्वारा प्रतिक्रियाओं के बुरी तरह शिकार हो रहे हैं, इसीलिए सोशल मीडिया मीडिया जगत के उन तमाम धुरंधरों के लिए अभिशाप बन चुकी है जिनको अपनी श्रेष्ठता पर बेवज़ह नाज़ है।
आखिर सोशल मीडिया है क्या ? यहाँ फेसबुक, ट्विटर आदि साइट्स पर सक्रिय जनमानस समाज के ही विभिन्न तबकों, विचारधाराओं के ही तो हैं। यहाँ हर पाठक ऐसा लेखक भी है जिसकी लिखत को वह खुद ही चाहे तो सम्पादित करेगा कोई दूसरा शख्स नहीं। आज सोशल मीडिया ने ही अवसर दिया है हर एक शख्स को कि वो अपने मन की बात को लिखे और दूसरों से साझा करे। हम-आप जैसे सोशल साइट्स पर, फेसबुक पर आते हैं, हमारे मन में क्या है, यह लिखने के लिए विकल्प हमारे सामने प्रस्तुत रहता है। अब एक आम और गम्भीर शिकायत सोशल मीडिया को लेकर सर्वव्याप्त है और वो है इस मंच का भी इस्तेमाल भड़काऊ, गैर जिम्मेदार कृत्यों के लिए होना और वार्तालापों के दौरान, बहस के दौरान अभद्र भाषा का प्रयोग तमाम लोगों द्वारा करना। क्या यह भड़काऊ बातें गैर जिम्मेदाराना हरकतें, अभद्र भाषा का प्रयोग समाज के अन्य मंचों, चौराहों, नुक्कड़ों में होने वाले वार्तालापों में लोग नहीं करते हैं ? करते हैं ना, तो फिर समाज के यही लोग अगर सोशल मीडिया पर भी वही दोहराते हैं तो इसमें सोशल मीडिया का क्या दोष ? यह हमारे-आपके ऊपर निर्भर करता है कि हम-आप सोशल मीडिया का उपयोग किस लिए कर रहे हैं, हम किस तरह के लोगों या समूह से खुद को जोड़े हुए हैं। मेरा अपना अनुभव तो सोशल मीडिया को लेकर बहुत ही सकारात्मक, ज्ञानवर्धक, दिलचस्प व प्रेरक है। सोशल मीडिया को खुले मन से स्वीकारने की और समाज के लोगों की भावनाओं-विचारों और सूचनाओं एवं इनको प्रेषित करने वालों की मनोभावनाओं को समझने की जरूरत है। लोगों के द्वारा शालीन भाषा में लिखे हुए सवाल-टिप्पणी से भी बौखलाहट का शिकार होते विद्वानों को सोशल मीडिया पर देखा जाना अति सरल है। अभद्र भाषा में लिखी टिप्पणी को हटाने या उस शख्स को ही सदैव के लिए अपने से दूर हटाने का बेहतरीन विकल्प इस सोशल मीडिया ने ही तो उपलब्ध करा रखा है। वास्तविक जीवन में समाज में अभद्र भाषा का प्रयोग करने वालों से बचाव का क्या तरीका अख्तियार करना पड़ता है, हम सबको इसका भी ध्यान सोशल मीडिया को इस सन्दर्भ में कोसने से पहले, कोसने वाले भद्र जनों को विचार कर लेना चाहिए।
समाज के लोगों के हाथ में उपलब्ध इस धारदार हथियार-मंच सोशल मीडिया पर मौजूद सक्रिय सभी लोगों का अपना-अपना अनुभव होगा, हाँ, अपना-अपना अनुभव। मैं भी समाज का एक अंग हूँ। पड़ोसियों, पारिवारिक रिश्तों अर्थात् तथाकथित वास्तविक दुनिया के रिश्तो से बेहतर भावनाओ की समझ रखने वाले, समझने वाले और समझाने वाले, हर ख़ुशी-गम आपस में मिल बाँटने वाले लोग मुझे तो इस तथाकथित आभासी-काल्पनिक दुनिया में मिले हैं। सोशल मीडिया-अनतर्जाल पर पता नहीं कितने प्रकार के जाल होंगे लेकिन मैं तो अपने अंतर्जाल के इन मित्रों के स्नेह, ममत्व, अपनत्व के जाल में बहुत ही सुकून महसूस करता हूँ। मेरे अपने जीवन के उस मोड़ पर जब करीबी लगभग सभी रिश्तेदारों ने मुँह मोड़ लिया था, राजनीतिक-सामाजिक लाभ ले चुके लोगों ने भी किनारा कस लिया था तो उस अकेलेपन के दौर से गुजरने में चन्द रिश्तों की डोर ने मुझे ताकत दिया, जीवन संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए मजबूर किया। यह चन्द रिश्ते ना होते तो शायद यह जीवन भी ना होता। अकेलेपन की दुनिया से निकलने और स्वार्थी लोगो से एक दुरी बनाये रखने के लिए इन्टरनेट का प्रयोग शुरु किया। आज यह गर्व से कह सकता हूँ कि यह सोशल मीडिया-इन्टरनेट की ताकत ही है कि तमाम अनजाने लोगो से मेरी जान-पहचान हुई और उनके स्नेह ने मुझे दिनों दिन हौसला ही दिया। आज तमाम पुराने जानने वाले स्वार्थी रिश्तेदारों से मुझे निजात मिल चुकी है, अब मेरी स्थिति सभी स्नेही जनों के आशीर्वाद से अच्छी है। उन लोगों से मिलने, बात करने में मेरी तनिक भी रूचि नहीं रहती जिन्होंने मेरा साथ मेरे बुरे वक़्त में नहीं दिया। आज मैं इन्टरनेट के ही माध्यम से एक बड़े और नए रिश्तों को हँसी-ख़ुशी जी रहा हूँ, खून से बड़े स्नेह रखने वाले लोग यहाँ मुझे मिले है। फेसबुक के सभी मित्र आज मुझे अपने परिवार के ही लगते हैं। मेरा अनुभव तो यही है इस सोशल मीडिया अंतर्जाल के सन्दर्भ में ……मैं तो सोशल मीडिया पर बने रिश्तों-अपने मित्रों से बहुत लाभान्वित हुआ हूँ, दुखी भी हुआ हूँ, दुःख भी साझा किया है और संघर्ष भी किया है साथ-साथ। सोशल मीडिया आम जन हेतु अभिशाप तो कतई नहीं है मेरी नजर में, यह समाज के हाथों में एक हथियार है जिसके उपयोग की प्रवृत्ति से यह निश्चित किया जा सकता है कि अमुक मामले में यह अभिशाप साबित हुआ और अमुक में वरदान। सोशल मीडिया रूपी यह धारदार हथियार समाज के हाथों में है और इसका गलत प्रयोग करने वाले व्यक्ति,समूह की प्रवृत्ति का दोष सोशल मीडिया के मंच पर ही थोपना उचित नहीं है।
सोशल मीडिया पर लोग अपनी बात धड़ल्ले और बेबाकी से लिख रहे हैं। अख़बारों के पत्रकारों-सम्पादकों और चिंतकों से ज्यादा लोकप्रिय चेहरे सोशल मीडिया पर सुर्खियां और टिप्पणियां बटोर रहे हैं। आज कल तक अनजान रहे चेहरों की लिखत के पीछे बड़े-बड़े चिंतक, लेखक, पत्रकार दौड़ लगा रहे है,उस लिखत की भर्त्सना या प्रशंसा कर रहे हैं और यही तो सोशल मीडिया की ताकत है। यह सोशल मीडिया का वरदान ही तो है कि अब कोई बात छुपाई या दबाई नहीं जा सकती है। http://www.hastakshep.com

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