
चुनावी मौसम में सबसे ज्यादा अकड़ अंगुली में होती है | उसकी वजह यह नहीं कि वह कोई बटन दबाकर सरकार चुनती है या चुन-चुन कर बिना बात कोई बटन दबाती है | वजह है कि वह कोई भी बटन दबाने से पहले कालिख के कदमों में गिरकर अपना मुंह काला करवाती है | लोकतंत्र में यह सर्वमान्य सिद्धांत है जिसका मुंह काला हो जाता है उसमे अकड़ आ ही जाती| इसी अकड़ को लेकर वह बटन दबाती है, दिशा बताती है, आसमान उठाती है, कुल मिलाकर चार दिन के लिए अंगुली अपनी औकात भूल जाती है|
वह अंगुली जो सामान्य दिनों में होठों पर रहती है, चुनाव आते ही असामान्य रूप से दूसरो की तरफ उठने लगती है | अंगुली के इस उठाईगीरे व्यवहार से सारे शील अश्लील मुहावरे चुनावी नारों में ढल जाते हैं| परिणामतः न केवल राजनेताओं का अपितु मतदाताओं के चरित्र का राजपत्रित सत्यापन होता है| राजपत्रित इसलिए क्योकि यह पूरी प्रक्रिया एक सवैधानिक संस्था चुनाव आयोग की देख-रेख में की जाती है | अंगुलियां अपने टेढ़ेपन के लिए जानी जाती हैं | टेढ़ी होकर घी निकालती है, सीधी होकर अपना तेल निकलवाती हैं | घी तेल की इस चिकनाई में अंगूठे का कोलेस्ट्रोल बिना बात बढ़ जाता है मतलब की कारनामे उँगलियों के होते हैं, भोगना अंगूठे को पड़ता है | चुनाव के समय दोनों के मुँह पर ही कालिख लगती है, मतदान के दौरान ऊँगली पे निशान दिया जाता है और अंगूठे का निशान लिया जाता है | ऊँगली अपनी पहचान दिखाती है , अंगूठा छुपाता है | क्योंकि ऊँगली अपनी बेशर्मी पर रीझती है, अंगूठा अपनी मजबूरी पर खीझता है | ऊँगली की स्याही तो पांच दिन में मिट जाती है , अंगूठे के निशान पांच- पांच पीढ़ियों के माथे पर नज़र आते हैं और हर बार चुनावो में अँगुलियों को प्रलोभन देकर अंगूठे का सौदा किया जाता है |
कुछ उंगलियां जिनकी अकड़ स्थायी होती है अपने नाखून बढ़ाकर इतराती है, बढ़े हुए नाखुनो को मुकुट मानती हैं | जो उनकी नहीं मानता है उसे डराती हैं, नोंचती हैं, चूँकि बढ़े नाख़ून की शक्ल में इनके सर पर मुकुट होता है, अतः मुकुट की संवैधानिक स्वीकृति मतदान की औपचारिक क्रिया से करवाती है | नाखून में मुकुट वाली ये उंगलियां लोकतंत्र के पर्व में बढ़- चढ़ कर भाग लेती है, फिर नोंच- नाच कर भाग लेती हैं | ऐसी ही एक गुजराती ऊँगली जिसके नाखून पता नहीं किस किस गर्दन पर गड़े थे, वर्तमान लोकतान्त्रिक पर्व में अपनी कालिख को टीवी चैनल पर दिखाते हुए चीयर लीडर सी नाच रही थी | दरअसल वो ऊँगली, ऊँगली होकर भी सबको अंगूठा दिखा रही थी | कुछ लोग ऊँगली पर बड़े नाखून में मुकुट का अक्स देखकर जय जयकार कर रहे थे, शेष नाखूनों की सच्चाई जानकर डर रहे थे |
इस बीच हमारी ऊँगली की स्याही उतर चुकी है , उसकी अकड़ खत्म हो गई है | वह शेष उँगलियों और अंगूठे के साथ हथेली की गोदी में जा बैठी है, भोजन का ग्रास खिलाने से लेकर हथेली का मुकद्दर गढ़ रही है | अंगूठा खुश है | पांचो उंगलियां कभी -कभी हवा में मुट्ठी बनकर तनती हैं, परन्तु ये सोचकर ढीली पड़ जाती हैं कि लोकतंत्र के पर्व में हमनें ही नाखुनों के पक्ष में बटन दबाया है |