-अंबरीश कुमार- उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के सामने और बड़ी चुनौतियां आने वाली है जिससे मुकाबला करना आसान नहीं है। चुनाव के नतीजों के बाद एक तरफ जहां पार्टी, परिवार का दबाव उनके राजकाज के तरीकों को लेकर बढ़ा, वहीं मीडिया की भूमिका भी बदली। इस सबके चलते वे अलग-थलग नजर आ रहे हैं। बदायूं हादसे को लेकर अखिलेश यादव की जिस तरह की राजनैतिक घेरेबंदी की गई है वह आने वाले दिनों का संकेत भी है। अगले महीने से धार्मिक कार्यक्रमों का जो दौर शुरू होगा वह दुर्गा पूजा और ईद तक चलेगा। भाजपा इस समय उत्साह से लबरेज है और वह अखिलेश सरकार को बोझ मानकर जल्द से जल्द निपटाने की हड़बड़ी में है। उमा भारती से लेकर कई नेताओं के इस तरह के बयान आ भी चुके हैं। पश्चिम में भाजपा के संगीत सोम ने जिस तेवर में पुलिस को धमकाया है वह भाजपा नेताओं की मानसिकता को साफ़ कर देता है। भाजपा उत्तर प्रदेश सरकार से हर मुद्दे पर टकराएगी और मीडिया के जरिए इस सरकार को नकारा बताने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ेगी। इसकी शुरुआत हो चुकी है। अब जिलों-जिलों में कई मुद्दों को लेकर भाजपा सड़क पर उतर रही है। इसके साथ ही लखनऊ में ऐसे आंदोलनों के जरिए टकराव शुरू हो चुका है। दरअसल विधान सभा की कई सीटों पर होने वाले उप चुनाव के लिए भी भाजपा तैयारी कर रही है। इसलिए प्रदेश में राजनैतिक माहौल अभी और गर्म होगा। खास बात यह है कि ऐसे माहौल में मीडिया भी मोर्चा खोल रहा है। दरअसल केंद्र में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद मीडिया का एक बड़ा तबका भी अखिलेश सरकार के खिलाफ खड़ा हो चुका है। अखिलेश यादव पर सरकार ना चला पाने का आरोप चस्पा हो चुका है। हालाँकि पहले यह आरोप था कि उत्तर प्रदेश में कई मुख्यमंत्री हैं, मुलायम सिंह, शिवपाल यादव, रामगोपाल यादव से लेकर आजम खान तक पर लोकसभा चुनाव में नाकामी का ठीकरा अकेले अखिलेश पर फूटा। जबकि इस चुनाव में मायावती, अजित सिंह से लेकर लालू नीतीश सभी बुरी तरह हारे और उसकी वजह कोई सुशासन नहीं रहा और ना ही विकास। वर्ना राजस्थान में आदमी तो आदमी जानवरों का मुफ्त इलाज कराने के साथ कई महत्वपूर्ण योजना लागू करने वाले अशोक गहलोत इतनी बुरी तरह ना हारते। इसलिए चुनाव का मुद्दा अलग है जो अब निपट भी चुका है इसलिए अखिलेश को राजकाज के मुद्दे पर घेरा जाएगा। बदायूं का मुद्दा उदाहरण है जिसे राजनैतिक रंग देने में हर दल आगे रहा। सभी को पता है कि बलात्कार की घटनाओं के मामले में कई राज्य उत्तर प्रदेश से भी आगे है पर मुद्दा उत्तर प्रदेश बना तो इसकी दो वजह है। एक तो मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने समय पर कड़ा कदम नहीं उठाया दूसरे जब खामोश रहने की जरूरत थी तो मीडिया पर तंज कसा। ठीक उसी तरह जैसे वे सैफई महोत्सव के मुद्दे पर बेवजह मीडिया से टकराए और मीडिया ने मुजफ्फरनगर कांड को सैफई महोत्सव से जोड़कर उनकी साख पर सवाल खड़ा कर दिया। इस बार भी सभी कि नाराजगी अखिलेश यादव की एक पत्रकार पर की गई टिपण्णी ही थी। यह बात न तो अखिलेश यादव के आसपास रहने वाले कोई नेता उन्हें बता पाए और न ही सरकार की तरफ से मीडिया सँभालने वाले नवनीत सहगल जैसे नौकरशाह। सरकार सिर्फ नौकरशाहों के भरोसे नहीं चलती है बल्कि उसके लिए राजनैतिक दृष्टि की भी जरूरत होती है जिसका लगातार अभाव उत्तर प्रदेश में देखा जा रहा है। मायावती जब सत्ता से बेदखल हुई थी तो भी उनका राजनैतिक प्रबंधन नौकरशाहों के हाथ में था और मीडिया प्रबंधन भी। समाजवादी पार्टी का लोकसभा चुनाव का मीडिया प्रबंधन इस बार एक नौकरशाह देख रहे थे कोई राजनैतिक व्यक्ति नहीं। नतीजा सामने आ चुका है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से विधान सभा चुनाव प्रचार के दौरान हमने जब सवाल किया था कि क्या वे मायावती की तरह मीडिया से दूरी बनाकर रखेंगे तो उनका जवाब था- कत्तई नहीं। पर दुर्भाग्य से कुछ आयोजनों को छोड़कर मीडिया से भी उनकी दूरी बनी रही है जिससे वे जनता की मनोभावनाओं को समझने में नाकाम भी हुए हैं। इसी तरह यह धारणा आम है कि प्रदेश में यादव बिरादरी के अफसरों पर कोई कार्यवाई नहीं हो सकती और जितने भी महत्वपूर्ण थाने हैं सभी के थानेदार यादव हैं। इसे लेकर राजनैतिक टीकाकार वीरेंद्रनाथ भट्ट ने कहा- वे मीडिया तो दूर अपनी पार्टी के नेताओं से भी दूरी बढ़ा रहे हैं यह प्रवृति खतरनाक साबित होगी। ऐसे समय में तो उन्हें ज्यादा से ज्यादा समय जनता के बीच देना चाहिए। एक झटके में नौकरशाही में बड़े पैमाने पर फेरबदल से कुछ हासिल होना मुश्किल है। सरकार को तो अब सावन की यात्राओं से शुरू होने वाले धार्मिक आयोजनों को लेकर तैयार होना चाहिए जिससे माहौल बिगड़ भी सकता है। इस टिपण्णी से भी आने वाले दिनों का संकेत मिल रहा है। खास बात यह है कि यह चुनौती सिर्फ सत्तारूढ़ दल की नहीं है बल्कि सभी धर्मनिरपेक्ष दलों के लिए है। तहरीके निसवां की संयोजक ताहिरा हसन ने कहा- उत्तर प्रदेश में अस्थिरता फ़ैलाने के प्रयासों को सभी को समझना चाहिए और इसका मुकाबला करने के लिए भी तैयार रहना होगा।
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