उन्होंने ऐसा ही अनुपम चमत्कार विदिषा में ही साठ के दषक में भी किया था, जब उस चमत्कार ने उन्हें विष्व स्तर पर व्यापक चर्चित तथा प्रचारित कर दिया था, क्या था वो बेमिसाल क्रांतिकारी करिष्मा ?
-अमिताभ शर्मा- विदिषा/ विष्व के सर्वोच्च सम्मान नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित-अभिनंदित होने का परम चमत्कार करने वाले कैलाष सत्यार्थी मूलतः कस्बाई मानसिकता के विदिषा जिला मुख्यालय के निवासी हैं। वे चाहे लम्बे अरसे पहले नई दिल्ली के निवासी हो गए हों पर उनके खानदान के अनेक परिवार अब भी विदिषा में ही निवासरत हैं। इससे भी बड़ा चमत्कार उन्होंने साठ के दषक में विदिषा में ही किया था, जिसने उन्हें ना केवल विदिषा क्षेत्र अपितु समूचे प्रदेष तथा देष के साथ पूरे विष्व में रातों-रात सुपर ह्यूमन हीरो की तरह चर्चित और प्रचारित कर दिया था। वो निष्चित रूप से अनुपम क्रांतिकारी अप्रतिम चमत्कार ही था। उस चमत्कार के बारे में तत्कालीन जनसंपर्ककर्मी जगदीष शर्मा बताते हुए अभिभूत हो उठे हैं।
जगदीष शर्मा के अनुसार वो घटना साठ के दषक में अब से दषकों पूर्व तब हुई थी, जब देष को स्वतंत्र हुए कोई डेढ़-दो दषक से अधिक की अवधि बीत चुकी थी। इसके बाद भी देष भर में जाति-पांति और छुआ-छूत का दौर कमोवेष सब दूर पहले की भांति ही जारी था। उस समय आमतौर पर घरों में कच्चे शौचालय ही होते थे और सफाई कामगारों द्वारा इन शौचालयों का मैला सिर पर ढोकर फेंकने ले जाया जाता था। इन कामगारों में भी अधिकांषतः महिलाएं ही सिर पर मैला ढोने का काम करतीं थीं। जाहिर है कि जाति-पांति और छुआ-छूत के उस दौर में भी सफाई कामगारों को ही परम्परानुसार सर्वाधिक अछूत और अस्पृष्य माना जाता था। दूसरी ओर उस समय केन्द्र सहित अधिकांष राज्य सरकारों पर कांग्रेस का एक छत्र राज हुआ करता था। अन्य दल तो नगण्य ही थे। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्रेरणा से कांग्रेस ने जाति-पांति और छुआ-छूत को दूर करने का संकल्प चाहे लिया था, पर कांग्रेस के सत्तासीन दिग्गज नेता भी कहीं भी संकल्प का अनुसरण नहीं कर रहे थे। कांग्रेसी नेता भी छुआ-छूत और जाति-पांति की पुरानी परम्परा ढो रहे थे। इन्हीं हालात में राष्ट्रीय पर्व (स्वतंत्रता दिवस अथवा गणतंत्र दिवस) ने दस्तक दी। पर्व दिवस के दो-तीन रोज पहले कैलाष सत्यार्थी ने तत्कालीन स्थानीय कांग्रेसी सांसदों, विधायकों, संगठन नेताओं सहित विभिन्न उच्च जातियों के अग्रगण्य व्यक्तियों से संपर्क कर उन्हें एक निमंत्रण दिया। उन्हें राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्रतिमा के परिसर में उस पर्व दिवस भोजन करने आमंत्रित किया था। साथ ही यह भी कहा था कि वहां भोजन एक सफाई कामगार महिला द्वारा बनाया जाएगा। उन्होंने ऐसा आमंत्रण विदिषावासी पूर्व मुख्यमंत्री बाबू तख्तमल जैन, राज्यसभा सांसद बाबू रामसहाय सक्सेना को भी दिया था। बस, फिर क्या था तमाम कांग्रेस नेता विदिषा में राष्ट्रीय पर्व मनाने के स्थान पर कोई ना कोई बहाना बनाकर विदिषा से बाहर चले गए और जो बाहर नहीं जा सके उन्होंने बीमारी का बहाना बनाकर घर से बाहर निकलने से इन्कार कर दिया था। जाहिर है कि श्री सत्यार्थी का आमंत्रण किसी नेता, गणमान्य व्यक्ति तो दूर की बात, किसी साधारण व्यक्ति ने भी स्वीकार नहीं किया था। आमंत्रण चाहे किसी ने भी स्वीकार नहीं किया था, पर राष्ट्रपिता के प्रतिमा स्थल पर सुबह से ही भारी भीड़ उस बेमिसाल करिष्मे को देखने एकत्र हो गई थी। फिर हुआ ये कि श्री सत्यार्थी और सफाई कामगार महिला पूर्व निर्धारित समय पर प्रतिमा स्थल पहुंच गए, जहां महिला र्ने इंटों का चूल्हा तैयार कर साथ में लाए गए लकड़ी-कण्डों से चूल्हा जलाया और दाल, चावल पकाए। फिर उसने वह भोजन वहीं श्री सत्यार्थी को परोसा, जिसे सत्यार्थी ने सार्वजनिक रूप से प्रेमपूर्वक ग्रहण किया। बस, फिर क्या था, जैसे ही स्थानीय पत्रकारों ने राजधानी भोपाल के समाचार-पत्रों को घटना के समाचार भेजे और अगले रोज समाचार पहले पेज पर प्रधान समाचार के रूप में छपने का परिणाम यह हुआ कि देष के राष्ट्रीय स्तर के समाचार-पत्रों के पत्रकार भी भोपाल और विदिषा पहुंच गए और उन्होंने भी राष्ट्रीय स्तर पर भी वैसा ही प्रमुखतापूर्ण कवरेज किया। इससे अंतर्राष्ट्रीय स्तर के समाचार पत्रों के प्रतिनिधि भी प्रेरित हुए और उन्होंने भी भोपाल तथा विदिषा पहुंचकर अपने-अपने पत्रों में विस्तृत रिपोर्ट प्रकाषित की, जिससे कैलाष सत्यार्थी विष्व स्तरीय सुपर ह्यूमन हीरो बन गए थे।

यहां यह भी स्मरणीय है कि हिन्दुओं में सफाई कामगारों को सबसे नीची जाति का और सर्वथा अछूत तथा अस्पृष्य मानने की परम्परा थी, जबकि सत्यार्थी हिन्दुओं की सर्वोच्च जाति ब्राह्मण के थे। किसी ब्राह्मण से इस प्रकार के क्रांतिकारी निर्णय की तो कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था। इसके बाद वे दिल्ली में बसे और बचपन बचाओ आंदोलन को विष्व व्यापी बना दिया। इसी आंदोलन ने उन्हें नोबेल सम्मान प्रदान कराया है, परन्तु इस आंदोलन को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सफल बनाने में विदिषा में साठ के दषक में घटी घटना और उससे उन्हें मिले विष्व व्यापी प्रचार ने सबसे बड़ी भूमिका निभाई।