आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत ने आगरा के शिविर में कहा कि भारतीय संस्कृति के संस्कारों से ही लव जेहाद जैसी बुराईयों को रोका जा सकता है। भागवत के इस बयान को मार्डन मम्मी-डैडी को समझना चाहिए। असल में पिताजी और माता जी के डैडी और मम्मी बन जाने से घरों में अनेक बुराईयां आ गई है। अब रात के समय मम्मी-डैडी अपने वातानुकूलित कमरे में तथा युवा बेटी और बेटा अपने-अपने कमरों में टीवी लेपटॉप, स्मार्ट मोबाइल फोन, इंटरनेट आदि की सुविधा के साथ सोते हैं। सुबह उठते हैं तो नौकर चाकर ही चाय-भोजन आदि देते हैं। डैड अपनी मौजमस्ती में तो मम्मी को किटी पार्टी से फुर्सत नहीं होती है। युवा बेटी अपने मन की बात करे तो किससे? फलस्वरूप बेटी स्कूल, कॉलेज दफ्तर आदि के दोस्तों पर ही निर्भर हो जाती है। लव जेहाद ही क्यों? यदि कोईलड़की अपने संस्कारों से परे जाकर भी प्रदर्शन करती है तो यह सामाजिक बुराई ही है। पिताजी-माताजी से मम्मी-डैडी बने मार्डन पैरेंट्स ईमानदारी से बताएं कि अपने युवा होते पुत्र-पुत्रियों के साथ दिन में कितना समय बिताते हैं। जो मम्मी-डैडी भारतीय संस्कृतिक के अनुरूप माताजी-पिताजी बन कर अपने बच्चों को ख्याल रखते हैं, उनके बच्चे लव जेहाद जैसी बुराईयों से बच जाते हैं। जो लड़की स्कूल-कॉलेज जाती है, उसे मोबाइल की क्या आवश्यकता है? आज यह सवाल बहुत मायने रखता है। जवाब तर्क पूर्ण होने चाहिए। कुतर्क तो कोई भी कर सकता है। यदि भारतीय संस्कृति के अनुरूप बच्चों की परवरिश करेंगे, तो ऐसे बच्चे उच्च शिक्षा के लिए बड़े शहरों में जाने के बाद भी नियंत्रण में रहेंगे। टीवी चैनलों पर बैठ कर जो प्रगतिशील महिलाएं उपदेश देती हैं, वे यदि अपनी बेटियों का उदाहरण रखें तो ज्यादा सार्थक होगा। समाजों के सामूहिक विवाह सम्मेलनों में उसी को उपदेश देने का अधिकार है, जिसने स्वयं बच्चों का विवाह ऐसे सम्मेलनों में किया हो। शेष फिर कभी। (एस.पी.मित्तल)
1 thought on “मार्डन मम्मी-डैडी संघ प्रमुख भागवत के बयान को समझे”
Comments are closed.
बहुत स्पष्ट शब्दों में बताया है ।आधुनिकता की दौर और पाश्चात्य अंधानुकरण में माँ – बाप बचों को स्कूल व् टीवी के भरोसे छोड़कर अपने कर्तव्य को इतिश्री मान बैठें हैं जब कोई दुर्घटना होती है तो पछताते हैं लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है ।