‘पीके’… फिल्म पर इतना हंगामा ? आखिर क्यों ?

pk-poster-जे.के. गर्ग- राजकुमार हिरानी द्वारा निर्देशित एवं सत्यमेव ज्येते फेम अभिनेता आमिर ख़ान द्वारा अभिनीत फिल्म ‘पीके’ की तारीफ़ के साथ ही विरोध के स्वर भी सुनाई दे रहे हैं. क्यों? क्योंकि यह फ़िल्म देश( जहां धर्म की जड़ें बेहद गहरी हैं)के लोगों की सामाजिक चेतना पर गम्भीर प्रश्न उठाती है, जहां पर धर्म एवं परम्परा की जड़ें बहुत गहरी हैं|

कथानक-
फिल्म में आमिर ख़ान एक एलियन (दूसरे ग्रह का प्राणी) बने हैं जो धरती पर आता है और यहां पर उसका, ‘रिमोट कंट्रोल’- (एक ऐसा उपकरण जिसके बिना वह अपने ग्रह पर वापस नहीं जा सकता)- चोरी हो जाता है एवं इस रिमोट कंट्रोल को चोर तथाकथित धर्म के ठेकेदार को बेच देता है जो इसका उपयोग अपने स्वार्थसिद्धी एवं धनार्जन के लिए करता है एवं जनता के दिलों में व्याप्त डर का भरपूर लाभ उठाता है.फिल्म का नायक उसे खोजने की पूरी कोशिश करता भी है जिस दोरान उसे भान होता है कि लोगों की राय के मुताबिक उसका रिमोर्ट कंट्रोल केवल भगवान की मदद से ही मिल सकता है |
वह इसे खोजने के किये दूर-दराज़ के मंदिरों, मस्जिदों और चर्चों और अन्य सभी धार्मिक स्थलों में जाता है जहाँ उसे पता चलता है कि स्वयंभू गुरु या ‘बाबा’ लोगों को धोखा देने के लिए अंधविश्वास और ‘ढोंग’ का सहारा लेते हैं और उनके विश्वास का अनुचित फायदा उठाते हैं उनकी भावनाओं से खेलते हैं.
सवाल पैदा होता कि क्या’पीके’ ऐसी पहली फ़िल्म है जो देश में व्याप्त धार्मिक आस्थाओं को आलोचना की दृष्टि से देखती है ? सत्य तो यह है कि “पीके” फिल्म के पूर्व भी एसी कई फिल्में आ चूकी है फिर इस फिल्म का इतना विरोध क्यों हो रहा है?
जवाब है इसकी सीधी-सादी कहानी. यह धर्म के अस्तित्व को लेकर कोई निष्कर्ष नहीं देती और भगवान के अस्तित्व को स्वीकारती भी है किन्तु अंधविश्वासों पर जरुर सवाल उठाती है|
फ़िल्म को आलोचकों की मिश्रित प्रतिक्रिया मिली है. ज़्यादातर ने ऐसे संवेदनशील मुद्दे को उठाने के लिए आमिर ख़ान और निर्देशक राजकुमार हिरानी की तारीफ़ की है | समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचारों के अनुसार सत्ताधारी पार्टी के वरिष्टतम नेता श्री लाल कृष्ण अडवाणीजी ने भी फिल्म की तारीफ की है | फ़िल्म समीक्षक नम्रता जोशी कहती हैं कि इतने संवेदनशील मुद्दे को मुख्यधारा के सिनेमा में लाने का श्रेय इन दोनों को दिया जाना चाहिए | वह कहती हैं, “आमिर एक सुपरस्टार हैं और इसलिए यह फ़िल्म लाखों लोगों तक पहुंच पाई है. इसने लोगों को सोचने पर मजबूर किया है. धर्म पर कई क्षेत्रीय फ़िल्में और पहले कुछ बॉलीवुड फ़िल्में बनाई गई हैं लेकिन फ़र्क़ आमिर खान के होने से पड़ा है.”

फिल्म के प्रदर्शन के समय देश में व्याप्त वातावरण-
कई लोगों को रिलीज़ का समय भी महत्वपूर्ण लग रहा है. फ़िल्म ऐसे समय में रिलीज़ हुई है जब धर्मपरिवर्तन जैसे मुद्दों पर संसद में बहस हो रही है और कई धर्मगुरु बलात्कार और हत्या के आरोप में गिरफ़्तार हुए हैं.

डॉ. जुगल किशोर गर्ग
डॉ. जुगल किशोर गर्ग

इस फिल्म को बहुत बड़ी संख्या में सभी समुदायों के लोग (युवा,व्यस्क,स्त्री-पुरुष,बूजुर्क )देख रहे हैं और इससे साफ़ साफ़ पता चलता है कि वें भी धार्मिक परंपराओं जैसे संवेदनशील मुद्दे पर भी बात- चित और बहस करना चाहते हैं. लेकिन सभी इस तर्क से सहमत नहीं हैं | उन्होंने ‘हिंदुत्व’ और अन्य धर्मों को ‘बदनाम करने’ के लिए फ़िल्म की निंदा की है, उनके अपने विचार-सोच है जिसका भी सम्मान होना चाहिए | वास्तव में इस पर वादविवाद हो सकता है |

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