जयपुर। राजस्थान के विभिन्न अंचलों में काम कर रहे स्वयं सहायता समूहों को विकास का सशक्त जरिया बनाने के लिए प्रशिक्षण, मॉनिटरिंग और मार्केटिंग आदि की सुविधाए बढ़ानी बहुत जरूरी हैं। इन समूहों के माध्यम से दूर-दराज के ग्रामीण क्षेत्रों में भी लोगों को बैंकिंग सुविधाओं से जोड़ा जा सकता है।
यह निष्कर्ष संेटर फॉर माइक्रोफाइनेंस (सीएमएफ) की ओर से यहां आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में उभरकर आया। संगोष्ठी के समापन सत्र में इस बात पर जोर दिया गया कि ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकाधिक ध्यान लोगों की वित्तीय साक्षरता बढ़ाने पर देना जरूरी है। बैंकों को केवल ़ऋण बांटने के लक्ष्य पूरे करने तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए बल्कि ऋण राशि के समुचित उपयोग और उससे स्थायी आजीविका दिलाने पर भी ध्यान देना चाहिए।
संगोष्ठी में प्रमुख अर्थशास्त्री प्रो. विजय शंकर व्यास ने कहा कि स्वयं सहायता समूहों के अधिकांश बैंक खाते निष्क्रिय हो रहे हैं। इसके कारणों का पता लगाने के लिए राज्य सरकार, रतनटाटा ट्रस्ट और नाबार्ड को मिलकर प्रयास करना चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया कि बैंकों को स्वयं सहायता समूहों से जुड़े लोगों के कौशल प्रशिक्षण और वित्तीय लेन-देन के तौर-तरीकों की जानकारी देने पर ध्यान देना चाहिए।
‘सीएमएफ’ के कार्यकारी निदेशक यतेश यादव ने माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र से संबंधित रिपोर्ट पेश करते हुए बताया कि राजस्थान में स्वयं सहायता समूहों के 23 फेडरेशन बने हुए हैं। लेकिन इन समूहों के बैंक लिंकेज का काम अभी तक अधूरा है। हर साल बढ़ रहे एनपीए के कारण बैंक भी आगे ऋण सहायता देने से हाथ ख्ीांच रहे हैं। बैंकों को इन समूहों के प्रति अपना नजरिया बदलने की दरकार है।
नाबार्ड के मुख्य महाप्रबंधक डॉ. राजेन्द्र सिंह ने कहा कि अगर स्वयं सहायता समूहों की साख और गुणव्त्ता अच्छी होती है तो बैंकों को उन्हें वित्तीय सहायता देने में कोई परेशानी नहीं होती। उन्हांेने गुजरात और राजस्थान के कुछ आदिवासी बहुल इलाकों का उदाहरण देते हुुए बताया कि वहां स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से फलदार वृक्ष लगाने की ‘वाडी’ परियोजना अत्यंत सफल रही है।
बैंक ऑफ बड़ौदा के महाप्रबंधक आर.के.गुप्ता ने बैंकों को स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से देश के विकास में भागीदारी निभाने के अवसर का भरपूर लाभ उठाना चाहिए। उन्होंने महिला स्वयं सहायता समूह बनाने, उनकी गुणवत्ता सुधारने और प्रशिक्षण और निगरानी की व्यवस्था बनाने पर भी विशेष जोर दिया।
राजस्थान क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक के अध्यक्ष के.पी.सिंह ने सुझाव दिया कि बैंकों को स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से शिक्षा ऋण देने पर विचार करना चाहिए। उन्होंने सहायता समूहों का रजिस्ट्रेशन कराने की भी सलाह दी।
संगोष्ठी के दौरान भारतीय स्टेट बैंक की अधिकारी कविता शेरावत, आई.सी.आई.सी.आई के प्रतिनिधि अमित गर्ग, यस बैंक के वैभव ने भी विचार रखे। जर्मन विकास निगम (जीआईजेड) की जोना बेकल ने दौसा और अजमेर जिलों में स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से चल रहे विकास कार्यों पर अपने अनुभव साझा किए। इस अवसर पर उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश ओर अन्य राज्यों से आई बैंक सखियों ने भी प्रस्तुति दीं। संचालन जयपालसिंह ने किया।
-कल्याणसिंह कोठारी
मीडिया सलाहकार