एजी ओजी लो जी सुनो जी, में हु मनमौजी, करता हु में जो वो तुम भी करोजी वन टू का फोर…वन टू का फोर…माई नेम इस नेताजी, कुर्सी पर बैठा जी। वाह रे कुर्सी, दरअसल तू ही देश की डगर है और तुझे चलाने वाला तो वो जादूगर है जो हमें हर रोज वादों के जादुई करतब दिखाता है। उसके नामुंकिन से हैरतअंगेज चुनावी वादे हमें हैरत में डाल देते है, उसके जादूई वादों की कलाबाजियां हमे डोर की तरह उसकी ओर खिचती है और हम भी नादान उसे पक्की डोर समझ ईवीएम पर बटन दबाकर राजनिति की पतंग उड़ा देते है। अब भला पतंग उड़ने के बाद इतनी जल्दी कहा जमीन पर आनी थी। आसमान में उसे भ्रष्टाचार का मकान जो बनाना था।पहले से उड़ रही राजनेताओ की पतंगों के साथ घोटालो की मंडी जो खोलनी थी। समय के साथ सब बदला और हमने तिरंगे के रंग में उडी पतंग को कालेधन के काले रंग में देखा। हुआ क्या ? दूसरी पतंगों ने आसमान में उसे जनता की डोर के सहारे काटा, लेकिन राजनीति के अंधियारे में वो उम्मीदों की पतंग भी काली पड गयी। हर तरफ काली पतंगों का झाल था, राजनीति के आसमान में अँधेरा ही अँधेरा था। हमारी आँखे गन्दी राजनीति के काले आसमान में उजाले की तलाश कर रही थी। माचिस तो थी लेकिन उस तिली का इन्तजार कर रही थी जो खुद जलकर शमा जलाये। वो तिली अन्ना के रूप में जली भी लेकिन मशाल लेकर आगे कोई खड़ा न हुआ । बस वो ही इंतज़ार फिर से कर रहे है हम, वो इंतज़ार जो हमारे हाथो से उड़कर गई काली पतंगों को धरातल दिखाए। वो इंतज़ार जो काले अंधियारे में डुबी राजनीति को चिराग दिखाए। साथियो क्या वो इंतज़ार के लम्हे ख़त्म होंगे ???
कुलभूषण