ईगो (स्वअहंकार या आत्म-अभिमान) हमारे स्वयं की आत्म संतुष्टी या और कुछ ?

डॉ. जुगल किशोर गर्ग
डॉ. जुगल किशोर गर्ग

विश्व में शायद कोई आदमी होगा जिसके भीतर लेशमात्र भी ईगो (स्व-अंहकार ) ना हो | हर आदमी के अन्दर कम या ज्यादा अंहकार/घमंड की भावनायें होती ही हैं | याद रक्खें कि आदमी के जीवन में अहंकार उसी क्षण प्रविष्ट हो जाता है जिस क्षण वह अपने जीवन में सोच को को अपनाता है, आदमी में समझ आते ही चारों ग्रन्थिया यथा क्रोध,मान, लोभ माया जुड़ जाती है | अंहकार एवं क्रोध में खून का रिश्ता होता है | अंहकार के शब्दकोष में आत्मीयता,स्नेह,प्रेम,दया और करुणा जैसे शब्द होते ही नहीं हैं , किन्तु ईर्ष्या, क्रोध,घ्रणा एवं तनाव आदि ईगो की ही शाखाएं हैं | ईगो युक्त (अंहकारी) मनुष्य की आत्मा कभी भी शांतचित्त नहीं रह सकती है | अंहकार-ईगो ही मानव और परमात्मा के बीच की सबसे प्रमुख बाधा बनता है |यह भी सत्य है कि हमारी देनिक जीवनचर्या में हमारा स्वअंहकार-ईगो हम में आत्मविश्वास का संचार कर हमें सफलता के नये-नये आयाम को प्राप्त करवाने में सहायक होता है |
हमारा ईगो हममें यह विश्वास उत्पन्न करता है कि समाज में हमारा भी विशेष स्थान है और हम महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं , हमारे योगदान को अनदेखा नहीं किया जा सकता है, सफलता अर्जन हमारे बिना संभव नही हो सकती है | स्वअंहकारी मनुष्य यही समझता है कि केवल वही बुद्धीमान है और दूसरों को कुछ भी ज्ञान नहीं है | जब परिवार में ईगो टकराता है तो परिवार का विघटन होता है,
स्वअंहकार-ईगो को नियंत्रित करने के कारगार उपाय
सच्चाई तो यह है कि अपने अंहकार-ईगो को नियंत्रित रख कर ही जीवन में हम सफलता,सुख एवं शांति प्राप्त कर सकते हैं |
निम्नलिखित तथ्यों पर अपने अंहकार को एक तरफ रख कर मनन करें, ऐसा करने से आप जीवन की सच्चाईयों को पहचान कर आशातीत सफलताएँ प्राप्त कर सकगें |
याद रक्खें कि आप अपने ऑफिस या कार्यस्थल पर इतने महत्वपूर्ण नहीं हैं जितना आप अपने लिये सोचते हैं या समझते हैं कि आपके बिना ऑफिस/घर/समाज में कुछ भी ठीक नहीं हो सकेगा,जब आप नहीं रहेगें तब भी ऑफिस का काम नहीं रुकेगा, नारायण मूर्ती एवं नन्दन नीलकेनी के बिना भी इनफ़ोसिस कंपनी सुचारू रूप से कार्य कर रही है, इंग्लिश भाषा में कावत है” No one is indispensable “ इस सच्चाई को आपको स्वीकार करना होगा कि आपके कार्यालय में अन्य सहकर्मी भी बुद्धीमान एवं चतुर है, हाँ यह हो सकता है की उनकी बुद्धीमता का स्तर आप के जितना नहीं हो |
आप इस गलतफहमी में नहीं रहें कि आपके उच्च अधिकारी या ग्राहकों आवश्यक सूचना/जानकारी सिर्फ आप ही दे सकते हैं, वें इनकी जानकारी आपके अन्य सहकर्मीयों या आपके अधिनस्थ कर्मचारियों से भी प्राप्त कर सकते हैं |
आपको दिए हुए कार्य के निष्पादन हेतु अगर आप अपने अधिनस्थ सहकर्मीयो की मदद लेते हैं तो यह आपकी कमजोरी की जगह आपकी सहजता ही कहलायेगी और इससे अन्य सहकर्मीयोंके दिल में आपकी इज्जत ही बढ़ेगी | जीवन में सदेव दूसरों को सम्मान दें किन्तु सम्मान पाने का प्रयास मत कीजिये |
अपने अंहकार (ईगो) को अपने से दूर रक्खें | यह कहना बंद करें कि आपने इतना अधिक काम किया है, इसकी जगह अपने सहकर्मीयों/अधीनस्थ कर्मचारियों को प्रोत्साहित करें,टीम भावना से काम करें,काम की सफलता का श्रेय खुद को देने के बजाय अपनी पुरी टीम को दें | अपने सहकर्मीयों को जिम्मेदारी दे, उनके मार्गदर्शक और सलाहकार बने, उन्हें भी आपके मार्ग निर्देशन में सीखने का अवसर दें |
हमेशा काम ही काम करने में व्यस्त रहना, कोई बहुत महत्वपूर्ण नहीं है, इससे ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि आप अपने परिवारजन के साथ उनके मुसीबत के समय साथ रहें, उनकी मदद करें,उनको सहयोग दें,जरूरी सलाह दें | आपने जीवन में कितना काम किया है उसे लोग समय के साथ शायद भूल भी जाये , किन्तु आपके द्वारा परिवार,समाज, आसपास के लोगों से किया गया अच्छा व्यहार, सामंजस्य प्रवर्ती और पारस्परिक मधुर सम्बन्धों की यादें उनके मानस पटल पर सदेव अंकित रहेगी |
अत: व्यक्ति में स्वाभिमान /आत्म गौरव तो होना चाहिए किन्तु उन्हें अपने जीवन में से अभिमान,अकड़ एवं दूसरों के बारे में नकारात्मक सोच को नहीं रखना चाहिए | याद रक्खें कि जो अंहकार के पत्थर बन गये थे उन्होनें अंत में हमेशा ही ठोकरें ही खायी है दूसरी तरफ दुनिया ने उसी की पूजा की है जिनके भीतर नम्रता एवं सदाशयता रही है |
ईगो दो मनुष्यों के बीच की मित्रता के बीच सबसे बड़ी दीवार बन जाती है, किसी भी बात का तिल का ताड़ और राई का पहाड बनाने में ईगो की सबसे बड़ी भूमिका होती हैं | जब परिवार में ईगो टकराता है तो परिवार का विघटन होता है |
ईगो से ही हम अपने अच्छे मित्रों को खो देते हैं, पारस्परिक सम्बंध बिगड़ जाते हैं,मन की शांती भी भंग हो जाती है एवं जीवन तनावयुक्त बन जाता है | क्रोध तब आता है जब आदमी के ईगो को चोट लगती है |अच्छा होगा आदमी अपनी जिन्दगी के घर से ईगो को अटाले की तरह बाहर फैकं दे ताकि वो खुद एक नेक दिल और अच्छा इन्सान बन सकें |
डा. जे.के. गर्ग
सन्दर्भ—विकीपिडीया,विभिन्न संतों-महापुरुषों के उद्धभोंदन

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