श्रीमद् भागवत में उमडा श्रद्धा का ज्वार
सुन्दर झांकियों की सजीव प्रस्तुतियॉ
श्रीमद् भागवत से भंवरियॉ परिसर हुआ मंत्रमुग्ध
राजसमन्द । साध्वी सुहृदय दीदी ने अपने प्रवचन में कहा कि विश्वनाथ के देश में कोई भी अनाथ नहीं हो सकता यदि प्रत्येक मनुष्य के हृदय में वात्सल्य का भाव है तो फिर केाई भी अनाथ नहीं हो सकता। उन्होंने वृन्दावन के वात्सल्य ग्राम का वर्णन करते हुए कहा कि वात्सत्य परिसर में सम्पूर्ण व्यवस्थाएं वात्सल्य भाव से पूरी की जाती है।
साध्वीजी भवरियॉ जैन समाज के नोहरे में चल रही श्रीमदभागवत कथा के दौरान अपनी भाव पूर्ण प्रस्तुति दे रही थी। उन्होंने माता-पिता द्वारा अपनी संतानों के लिए कर्त्तव्यों ओर दायित्वों मंे संस्कार को प्रमुखता से बताया। पांच वर्ष तक की संतान कच्चे घडे के समान होती है जहॉ बच्चों को अच्छे ओर सुसंस्कार माता-पिता द्वारा मिलने चाहिए।
साध्वी जी ने बताया कि मनुष्य को हमेशा संयमित वाणी बोलनी चाहिए, मनुष्य की कटु वाणी का तीर हथियार से भी घातक होता हैै, वाणी हृदय ओर मन दोनों को छलनी कर देता है। एक बार मुख से कटु वाणी का तीर जब निकल जाता हे तो दौबारा वापिस नहीं आता अतः सदैव सोच समझ कर बोलना चाहिए। वाणी के बाण से किसी के भी हृदय को छलनी मत करो। मनुष्य को हमेशा अमृत वाणी बोलनी चाहिए जिससे अमृत वाणी दूसरों के कानों में घुल कर प्रेमरूपी रज्जु द्वारा हृदय के अन्तकर्ण से मोती को निकाल सके।
कथा में अमृत ओर कडवी वाणी के प्रभाव ओर परिणामों को समझाते हुए भक्त धु्रव की माता सुरूचि का उदाहरण दिया कि कैसे उनकी माता की वाणी के कारण पांच साल की उम्र में घर छोड कर कठोर तप के लिए निकलना पडा, जहा उनकों नारदजी द्वारा ‘‘ ओम नमः भगवते वासुदेवाय‘‘ का सिद्ध मंत्र दिया गया। धु्रव की भक्ति सफल हुई भगवान स्वयं उनके समक्ष प्रकट हुए ओर 36 हजार वर्ष राज्य का वर दिया। ध्रु्रव जैसा भक्त न हुआ हे ओर न होगा।
साध्वीजी ने बली प्रथा के भ्रम को समझाते हुए कहा कि कोई भी माता अपनी संतानों के प्राण लेकर कैसे प्रसन्न हो सकती है। देश में गौ माता की दुर्दशा पर चिन्ता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि जाने अनजाने में हमारें द्वारा भी ऐसे कई कार्य होते है जिससे गौमाता का जीवन खतरे में पडता है। हमारे द्वारा सडक पर फेके जाने वाला कचरा जिसमें पोलिथिन के केरीबेग होते है जिससे कई बार गाय के प्राण संकट में पड जाते है।
गोहत्या पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि सम्प्रदाय अलग हो सकते लेकिन करूणा, वात्सल्य, ममता ओर अंहिसा के भाव अलग नही हो सकते तो फिर क्यू गोमाता के प्रति इतनी निर्दयता देखने को मिलती है।
प्रभु नाम के सुमीरण की महत्ता को समझाते हुए साध्वीजी ने कहा कि जहा नारायण का उच्चारण होता है वहॉ काल भी नही जाता। प्रभु नाम की महत्ता के लिए अजामील नाम के ब्राह्मण का जीवन वृतान्त सुनाया। अजामील केा ऋषी आशीर्वाद से नारायण नाम के पुत्र की प्राप्ती ओर अजामील के अंतिम समय में अपने पुत्र नारायण के नाम मात्र पुकारने से कैसे उनकों मुक्ति मिलती है। प्रसंग के दौरान नारायण नाम की धून से पाण्डाल नारायणमय बन गया।
नृसिंह अवतार की जीवन्त झांकी भी देखने को मिली।
कथा विराम से पूर्व भक्त प्रहलाद का प्रसंग श्रद्धालुओं को श्रद्धा ओर आस्था की उचाई पर ले गया। किस तरह से प्रहलाद को बचाने के लिए भगवान नारायण ने नृसिंह अवतार के रूप में खम्मे से प्रकट होते है ओर हिरण्यकश्यप का वध किया जाता है । कथा विराम के पश्चात श्रद्धालुओं द्वारा संगीतमय आरती ओर प्रसाद वितरण का कार्यक्रम किया गया।