
रमजान माह में होने वाले रोजा अफ्तार के कार्यक्रमों में कौमी एकता दिखाने के लिए जो प्रपंच किए जाते हैं, उससे कहीं दूर प्रसादी का आयोजन कौमी एकता की हकीकत बन गया। अजमेर के लोहाखान क्षेत्र में रहने वाले नजरुद्दीन और उनकी पत्नी जीनत बानो को पिछले कई दिनों से इस बात का आभास हो रहा था कि उनके पूर्वज दाल-बाटी चूरमा खाना चाहते हैं और यह भी वहां जहां वे रहते थे। नजरुद्दीन और जीनत बानो ने जब यह बात अपने पुत्र मासूम अली को बताई तो पुत्र ने बिना कोई देर किए 12 अप्रैल को गेगल के निकट ऊंटड़ा गांव में उसी स्थान पर प्रसादी का आयोजन किया, जहां उनके पूर्वजों की मजार बनी हुई हंै। जब दाल बाटी चूरमा प्रसादी के तौर पर तैयार हो गया तो सबसे पहले पूर्वजों की मजार पर रखा गया, उसके बाद आए हुए सभी मेहमानों को स्वादिष्ट दाल बाटी चूरमा खिलाया गया। नजरुद्दीन और जीनत बानो को इस बात की खुशी थी कि उनके बेटे ने प्रसादी का आयोजन किया। इस आयोजन में जहां मासूम अली के सम्पूर्ण खानदान के लोगों ने भाग लिया, वहीं बड़ी संख्या में हिन्दू मित्रों ने भी अपनी उपस्थित दर्ज करवाई। एक मुस्लिम परिवार द्वारा प्रसादी का आयोजन करना ही कौमीएकता की हकीकत है। मासूम अली जैसे मुस्लिम परिवार ही समाज में सद्भावना बनाए रख सकते हैं। मुझे भी इस बात का गर्व है कि पूर्वजों के लिए बनाई गई प्रसादी का स्वाद चखने का अवसर मिला। मैं और मेरे वरिष्ठ सहयोगी विनीत लोहिया ने 12 अप्रैल को ऊटड़ा गांव की सरकारी स्कूल के एक कमरे में बैठकर जमकर दालबाटी चूरमा खाया। मैंने देखा नजरुद्दीन और जीनत बानो की आंखों में खुशी साफ झलक रही थी। समझ में नहीं आता कि जब पूर्वजों के लिए प्रसादी होती है तो फिर छोटी-छोटी बातों पर साम्प्रदायिक तनाव क्यों होते हैं।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in) M-09829071511