
-दुर्गसिंह राजपुरोहित- मसर्रत आलम,यासीन मलिक और स्वयंभू कश्मीरी “हिटलर” गिलानी अपने सैकड़ों हजारों नही बल्कि लाखों को संख्या में अलगाववादी समर्थकों के साथ खुले आम पाकिस्तान के झंडे को सरज़मीं-ए-हिंदुस्तान पर लहरा रहे हैं और घाटी में पाकिस्तान मेरी जान के नारे दे रहे हैं। घाटी की बीजेपी समर्थित सरकार बाकायदा पुलिस सुरक्षा उपलब्ध करवा रही हैं और सार्वजनिक भाषणों में मोदी के दावों को “मिट्टी पलीत” किया जा रहा हैं। “विदेश प्रधानमंत्री” के विपक्ष द्वारा दिए गए तमगे को हासिल कर चुके मोदी को अब अपने दावों को धरातल पर साबित करना होगा क्योंकि 60 सालों से ज्यादा सत्तासीन रही कांग्रेस अगर एक झटके में सत्ताविहीन हो सकती हैं तो जनता को ये कारनामा दोहराने में वक़्त नहीं लगेगा।
घाटी के साथ साथ झारखण्ड में “देशी आतंकवाद” चरम पर हैं। लगातार सीआरपीएफ के जवान नक्सलवादियों के हाथों मारे जा रहे हैं लेकिन जंगलो में छिपे बैठे इन उग्रवादियों को इसी कारण “नष्ट” नहीं किया जा रहा हैं कि ये हमारे अपने हैं जो अब अपने नही होकर गैर बने हुए हैं लेकिन सवाल यह भी हैं कि अगर अपराधी, हत्यारा, देश के विरुद्ध जंग छेड़े बैठे लोगो की कोई जाति मजहब नही होने का दावा हर बार संविधान कर रहा हैं तो क्यों नरमी यहाँ बरती जा रही हैं। इसलिए मोदी का विदेशों से “मेक इन इंडिया” निवेश का सपना पूरा करने का प्रयास भी खटाई में पड़ना लाज़मी हैं। मुल्क में इस तरह से भययुक्त माहौल में कैसे “व्यापार” की सम्भावनाएं जन्म लेगी यह तो मोदी और उनके कथित भक्त ही जाने। लेकिन इन मुद्दों पर प्रतिपक्ष का प्रभावी बयान भी नहीं आना “वोटबैंक” की राजनीति का परिचय दे रहा हैं।