
यूँ तो पूरे देश मे ही पुलिस की छवि अभी भी वैसी ही है जैसी आज से ६८वर्ष पहले थी यानि कि जब हम गुलाम थे और अंग्रेजो ने अपनी धमक कायम रखने के लिए मन चाहे ढंग से पुलिस का इस्तमाल करने के लिये बाकायदा आपराथिक दँड प्रक्रिया यानि सी०आर०पी सी कानून १८६० मे बनाया था । लेकिन आजादी के बाद इस कानून को बदलने की प्रक्रिया १९७३ मे की गई लेकिन आधे अधूरे प्रावधानो के साथ क्यों कि १८६०के आपराधिक दँड प्रक्रिया मे बहुत से एसे प्रावधान थे जिनसे नस्लवाद की बदबू आती थी यानि अंग्रेजों एवम योरोपियन मूल के लोगो के लिएदँड प्रक्रिया मे भेदभाव था । अबहम बात करते है सी आर पी सी धारा ४१से लेकर धारा ६० तक ईन सभी धाराओ में पुलिस के अधिकारो की वितृत और व्यापक व्याख्या की गई है इसमे यहाँ तक कहा गया है कि पुलिस का साधारण सिपाही भी अपराध होने से पहले और बाद में भी कहीं भी और कभी भी किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकता है । यहाँतक कि किसी भी निर्अपराघी को भी बिना वारन्ट के भी गिरप्तार कर सकता है । अब सवाल यह है कि एक साधारण आठवीं या दसवीं पास पुलिस के सिपाही के ईतने अधिकार क्योंकर दिये गये है । हमें तो ऐसा ही लगता है कि अंग्रेजों ने १८६० का आपराधिक दँड प्रक्रिया नियमावली केवल भारतीयों पर शासन करने के लिए ही बनाई थी जिसमें अंग्रेजों और यूरोपियन लोगों को विषेश छूट दी गई थी। इसलिए स्वतंत्रता के बाद होना तो यह चाहिए था कि संविधान की मर्यादा के अनुरूप ही आपराधिक दँड प्रक्रिया नियमावली को परिभाषित किया जाना चाहिए था जिसमे शासक जनता है। और नेता और ब्युरोक्रेट जनता के नौकर है । लेकिन व्यवाहरिक रूप में नेता असली शासक है और। ब्युरोक्रेट नेतोओं के सहायक और जनता बेचारी भेड बकरी के समान जो कुर्बानी के लिए खूंटे से बधें हुए अपनी बारी के ईंन्तजार में दिन काट रही है ।महान व्यक्ति संविधान निर्माता भारत रत्न डाक्टर भीम राव रामजी अम्बेडकर को भी शायद इस बात की जरूरत भी समझ में नही आई होगी की अपने स्वयं के संविधान के साथ साथ ं दँड प्रक्रिया नियमावली को भी भारतीय संविधान के अनुरूप बनाने की और नौकरशाही तथा अपने चुने हुऐ सेवकों के अधिकारों को नए सिरे से परिभाषित करने की जरूरत थी।
अभी वर्ष २०१४ मे समपन्न चुनावी समर के दौरान बहुत बडे बडे नेताओं ने बहुत बडे बडे वायदे किये थे कि भारत को स्वर्ग बना देगें । भ्रष्टाचारियों पर लगाम लगाएगे । सुरक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ करेगें महंगाई को समाप्त करेंगें ।कानूनों मे बदलाव करेंगें ।लेकिन धरातल पर आजतक कुछ नही हुआ है ।सरकार अपनी ही पीठ ठोकने के लिएबहुत से उपाय करने में व्यस्त है ।दे श की राजधानी दिल्ली में कानून व्यवस्था की स्थिति क्या है यह इसी म्ई
माह में दिल्ली पुलिस द्वारा की गई दो घटनाओं का जिक्र करना जरूरी हो जाता है जब एक ट्रैफिक पुलिस का सिपाही दिन दहाडे एक महिला को ईंट मारते हुये कैमरों में कैद किया गया था महिला का कसूर केवल ईतना था कि उसने रैड लाईटए जम्प की थी । दूसरी घटना अपने आप ही सारी दास्तां कहते हुये नजर आती है । दिल्ली पुलिस के स्पैशल शैल का का मुख्य कार्य आंतकवादियों और आतंकी घटनाओं पर अंकुश लगाने का जिम्मा है। लेकिन दिल्ली पुलिस के स्पैशल शैल का कारनमा देखिए कि उसने सागररत्ना रेटोरैन्ट मैं दोस्तो के साथ खाना खा रहे एक व्यक्ति को नौ पुलिस कर्मियो ने गोली से भून दिया ।प्रधान मन्त्री ग्रह मंत्री
और एल जी (लाला जी नही )अपने लैफ्टीनैटं गवर्नर मस्त है। उन्हे अपनेबर्चस्व को कायम करने में ही साराजोर लगाना पड रहा है ।
जब बात जनता की सुरक्षा की आती है तो फोर्स की कमी का रोना रोया जाता है जबकि स्थिति यह है कि कल तक जनता के द्वार पर अपना माथा रगडने वाले नेतागण चुनाव जतने के बाद एकदम खास बन जाते है और अगर मन्त्री बन गये तो पाँचो उंगलियाँ घी में और फिर वाई जैड या जैड प्लस श्रेणी की सुरक्षा सरकारी खर्च पर उपलब्ध हो जाती और नेताजी अपनी जनता के द्वारा चुने जाने के बावजूद उसी जनता को उपलब्ध नही हो पाते । तो इसलिये यह जरूरी हो जाता है कि हम अंग्रेजो द्वारा बनाए गये आई पी सी और सी आर पी सी गुलामी के कलंक को दुबारा से लोकतंत्र के परिपेक्ष में निर्मित करें और दे श की जनता को सम्मान दें।।
S.P.Singh, Meerut.