मिनिमम गवर्मैन्ट मैक्सीमम गवर्नैसं ?

sohanpal singh
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(यह बहुत दुखद होता है कि किसी महिला के विरूद्ध कुछ कहा जाए या कुछ लिखा जाए । लेकिन अगर व्यभीचार राजनीतिक हो या फिर अनैतिक आचरण हो और उस पर चुप रहना हो तो और भी कष्ट दायक होना स्वभाविक ही है ।)

बहुत पानी बह चुका है गंगा और जमुना मे जबसे अब तक जब हम गुडगवर्नैसं और भ्रष्टाचार मुक्त भारत की बातें बडे बडे नेताओ के मुखारविन्द से सुनते सुनते थक जाया करते थे । फिर चमत्कार हुआ और सबसे अधिक साफसुथरी स्वच्छ छवि की पार्टी की प्रचन्ड बहुमत की सरकार की स्थापना भी हो ही गई। १२महिने का मधुमास का समय भी बीत ही गया खैरियत के साथ सबकुछ ठीकठाक रहा । भैय्या जी ने भी खूब छाती ठोक ठोक कर कहा कि मेरी सरकार पर आजतक कोई आरोप नही है और नही कोई आरोप लगा सका है ।हम भी बहुत खुश है कि चलो बैंक खाते में १५लाख रुपए आज नही तो कल तो अवश्य ही आ जायंगे ।
जैसे ही तेरहवां महिना लगा कि ंआफत ही आ गई हो ।हमे तो एसा लगा कि यह तो बडबोले और गर्वीले बोल बोलने का खमियाजा भोगने जैसा ही हो गया कि देश कि विदेश मंत्री विवादों में फसं ही गई । उस बात से किसी को भी कभी भी कोई आपत्ति नहीहोसकती कि मानवीय आधारपर किसी की सहायता कि जाय । जैसाकि यमन में फंसे भारतीय को निकालने के साथ साथ कुछ मित्र देशों के साथ ही अपने पडोसी पाकीस्तान के लोगों को भी गृहयुद्ध से बाहर निकाल कर सराहनीय कार्य किया जब कि पाकिस्तान जगजाहिर प्रतिद्वंदवि ही है । जिसकी प्रसंसा पूरे विश्व ने की है ।

लेकिन वहीं विदेष मंत्री जब एक भारतीय कानून के मुजरिम भगोडे ७००करोड के आर्थिक अपराधी ललित मोदी को संरक्षण देकर उसके यात्रा प्रपत्रों को बनवाने में ब्रिटिश अधिकारियों से शिफारिस करती है तो सारी मान मर्यादा को ताख पर रख देतीं है । मंत्री पद की शपथ लेते समय प्रत्येक व्यक्ति भारतीय संविधान की शपथ लेता है परन्तु हमें ऐसा लगता है कि हमारी विदेष मंत्री ने शायद भूलवश किसी पडोसी देश के संविधान की शपथ ली होगी ? इसलिए भारतीय संविधान को धता बताने वाले ललित मोदी की सहायता करने में सभी सीमाऔं का उल्घन किया है ।कानून की नजरों में सभी अपराधी एक समान होते है । किसी अपराधी की सहायता करना भी अपराध में शामिल होने के बराबर ही है । ईसलिए इस अपराध की सजा तो जब मिले न भी मिले लेकिन उन्हें त्याग ्पत्र तो तुरंत ही देना चाहिए? क्योंकि भारत सरकार के मंत्रालय किसी प्राईवेट कम्पनी की जागीर नही हैऔर न ही किसी के पिताश्री का खजाना है कि जब चाहो जिसे भी देदो ।

अब हम बात करते है दुसरी महिला कि जो एक प्रदेश की मुख्यमंत्री है । यह भी गजब का संयोग है कि ललित मोदी के साथ इनके भी पारिवारिक संमबन्ध भी बहुत गहरे है ।ईन्होने भी कानून के भगोडे अपराधी के यात्रा संमबन्धी प्रपत्रो को बनाने में सीक्रेट तरिके से मदद की है । असाधारण बात तो यह है कि दोनो ही महिला नेत्रियों ने ललित मोदी के साथ संमबधं होने और मदद करने की बात बहुत ही साहसिक तरिके से मान भी ली है । लेकिन संमबधों की आड में कही न कही आर्थिक लाभ होने से इंकार नही किया जा सकता । जैसा कि समाचारो में है कि मुख्यमंत्री के बेटे और बहु की एक बेनाम सी कम्पनी में ललित ने १०रुपए मूल्य के शेयर की कीमत ९६०००अदा की है और कम्पनी को तेरह करोड रुपये का लाभ पहुचाया है । दूसरी ओर विदेश मंत्री की पुत्री और पति भी आर्थिक अपराधी ललित मोदी से कहीं न कहीं अनुग्रहित है ही। ऐसे में व्यक्तिगत समंबन्धों की बात करना बेमानी ही नही बचकानी हिमाकत के अलावा कुछ भी तो नही है ।

अब तेरहवें महिने में अगर हिन्दुत्व वाली पार्टी के मंत्रियों के कारनामों के पिटारे खुल रहे हैं तो यह पार्टी दूसरों से अलग कैसे हो सकती है । जनता को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर भ्रमित करके सत्ता पर काबिज होने वाली वर्तमान पार्टी की सरकार अगर यह समझती है कि अपने मंत्रियों के राजनीतिक पापों को तकनीकी तौर पर दूसरी पार्टियों के साथ तुलनात्मक प्रक्रिया से तुलना करके कमतर दिखाने की गलती करेगी तो खमियाजा भी उसे ही भुगतना होगा । जैसा कि दिल्ली मे भुगता है । जहाँ एक नौसिखिए ने चारो खाने चित्त कर दिया था ।

हमारे निराले लोक प्रिय प्रधानमंत्री यह कहने में कभी भी संकोच नही करते कि वह प्रधानमंत्री नही अपितु प्रधान सेवक है । वैसे भी लोकतंत्र में जनता ही शासक होती है इसलिए चुने हुए प्रतिनिधि कभी भी शासक नही हो सकते । इसलिए ही सवाल यह ऊठता है कि क्या किसी नौकर /सेवक को यह हक हैकि वह अपने कुछ खास लोगों को जो देश के कानून के अपराधी भी हो उसे नाजायज तरीके से सहायता प्रदान करे । समाजसेवी श्रीअण्णा हजारे भी यही कहते है कि जन प्रतिनिधि जनता का नौकर होता है और जनता उसकी मालिक होती है । अब ऐसे में नौकर को मालिक की अवहेलना का अधिकार किसने दिया है कि जनता के अपराधी के साथ सहानुभूति निभाए । अपने हितों को साधे । एस०पी०सिहँ । मेरठ

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