कोई धणी धोरी नहीं …
बस सब की स्वार्थ पूर्ति का साधन मात्र बना अजमेर ….
कालान्तर में बहुत स्वप्न दिखा कर मेरे साथी मुझे सुचारू रूप से चलाने की कसमें खाते आये
और
फिर कसमें खाते हुए एक बार और आकर स्वप्न पूरा करने की दुहाई देते रहे ….
मैं और मेरी जनता जान बूझ कर ठगी जाती रही…..
मैं लाचार और मेरी जनता मुझे से ज़यादा लाचार ….
आप पूछेंगे मुझ से ज़यादा कैसे ….
भाई जो सो रहा हो उसे तो जगाया जा सकता है ….
परन्तु
जो सोने का नाटक कर रहा हो उसे कैसे सकते हैं भला ….
तो ऐसे सोने का ढोंग किये हुए मेरी जनता मुझे से ज़यादा लाचार ….
मेरी बसावट पहाड़ों से घिरी है , बहुत सुन्दर हूँ मैं …..
प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण …
परन्तु
अवैध खनन की शिकार , अवैध वृक्षों की कटाई से धीरे धीरे पानी की कमी की शिकार….
पता है ये वेदना इतनी प्रबल क्यों है ….
क्यूंकि ये मेरे अपनों के स्वार्थों की देन है….
हाँ मैं अजमेर हूँ ….
तंग गलियों और उस पर अतिक्रमण की मार सहती ….
सड़कों के किनारों पर कच्चे पैदल पर बैठे लाचार थड़ीवालों की दयनीय दशा को निहारूं या सड़क पर चलते पैदल यात्रियों पर तरस खाऊं ….
व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के बाहर खड़े बेतरतीब वाहनों को देखूं या उस के कारण हुए जाम को ….
बड़ी बड़ी व्यावसायिक और रिहाइशी अट्टालिकाएं किस को पसंद नहीं ….
परन्तु
मेरा दुर्भाग्य देखो मेरे अपने बच्चे अपने स्वार्थ के चलते पार्किंग के लिए जगह नहीं छोड़ते …..
और
जिन को अजमेर संभालने का जिम्मा सौंपें वे बिकाऊ निकले ….
मेरा ही चेहरा बिगाड़ने की कीमत वसूलते रहे ….
नालियां गन्दी , जंगली झाड़ियाँ उगी हुई , सड़कें टूटी हुई , कचरा चहुं ओर बिखरा हुआ और सब ओर व्याप्त बदबू …..
ऐसा अपना हाल तो नहीं सोचा था मैंने अपनों के ही हाथ …..
स्वार्थ और निद्रा की जुगलबंदी मुझे डंस गयी है….
मुझे संवारने की कसमें अब फिर खाएंगे लोग ….
मैं क्या करूँ ??
Kirti Sharma Pathak
