नहीं गई वसुन्धरा, कायम है राज

ओम माथुर
ओम माथुर
वसुन्धरा राजे ने साबित कर दिया कि ठसके से राज करना किसे कहते हैं। अखबार और चैनल वालों ने तो ऐसी-ऐसी खबरें चलाई कि लगा कि वसुन्धरा अब गई-तब गई। लेकिन राजस्थान में लगता है वसुन्धरा भाजपा के लिए मजबूरी है। जिस महिला ने 2009 में विपक्ष का नेता बनने के लिए बगावत कर विधायकों की परेड करा दी थी,कोई उनसे कैसे मुख्यमंत्री का पद छोड़ने की उम्मीद कर सकता था? भले ही टीवी चैनलों ने ये खबरें खुद गढ़ी हो कि,यदि वसुन्धरा को हटाया,तो राजस्थान में बगावत हो जाएगी,वसुन्धरा के साथ एक सौ बीस से ज्यादा विधायक,वसुन्धरा ने हाईकमान को संदेश भेजा,नहीं दूंगी इस्तीफा। लेकिन परदे की पीछे की यही हकीकत है। अब सीएम के मीडिया सलाहकार इनका खंडन कर रहे हैं,लेकिन इन खबरों से वसुन्धरा को नुकसान नहीं,बल्कि फायदा ही हुआ। यूं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह भले ही वसुन्धरा के मुद्दे पर खामोश हो,लेकिन दोनों जानते हैं कि उन पर कार्रवाई का मतलब बंद मुट्ठी का खुल जाना है। कारण,अभी तक मोदी की ये छवि बनी हुई है सत्ता और संगठन में उनका एकछत्र राज है। कोई मंत्री या पदाधिकारी उनके सामने बोलने की हिम्मत नहीं करता। ऐसे में यदि वसुन्धरा पर कोई कार्रवाई होती और वो वाकई बगातव का झंडा उठा लेती,तो मोदी की छवि पर भी आंच आती।
लेकिन ललित मोदी प्रकरण ने भाजपा की नैतिकता के मुंह से नकाब नोंच लिया है। विपक्ष में रहते यूपीए सरकार के मंत्रियों पर आरोप लगाकर नैतिकता के आधार पर इस्तीफा मांगने वाले भाजपाईयों की नैतिकता की परिभाषा सत्ता मिलते ही बदल गई है। लेकिन ये भी अच्छा हुआ,कई लोगों को ये गलतफहमी थी कि भाजपा पार्टी विद डिफरेंस हैं और पीएम के भाषण सुनकर उन्हें लगता था कि ये पार्टी जरूर देश में कोई क्रांतिकारी बदलाव करेगी। लेकिन सुषमा,वसुन्धरा,स्मृति और पंकजा के मामलों में नैतिकता की हवा निकल गई। यानि फिर साबित हो गया की कुर्सी पर बैठने वालों के चेहरे बदल जाते हैं,आचरण और नीयत वही रहती है।
वरिष्ठ पत्रकार ओम माथुर की फेसबुक वाल से साभार

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