राजनीति में इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा कि अजमेर नगर निगम चुनाव में प्रमुख राजनैतिक पार्टी भाजपा और कांग्रेस दोनों ही नामांकन की अंतिम तिथि से पहले अधिकृत उम्मीदवारों की घोषणा नहीं कर सकी। दोनों ही दलों के नेताओं को अपनी ही पार्टी के कार्यकर्ताओं की बगावत से इतना डर था कि सिंबल को भी सीधे निर्वाचन अधिकारी को दिया गया। यानि अधिकतर उम्मीदवार ने अपने नामांकन के साथ सिंबल संलग्न नहीं किया। 17 अगस्त को होने वाले वार्डों के चुनाव के लिए पांच अगस्त को नामांकन का अंतिम दिन था। चूंकि दोनों ही दलों ने उम्मीदवारों की घोषणा नहीं की इसलिए अंतिम दिन ही दोनों दलों के उम्मीदवारों ने नामांकन भरे। जिन कार्यकर्ताओं को उम्मीदवार बनाया गया। उनको एक-एक कर मोबाइल पर सूचित किया। सूचना की ऐसी गफलत हुई कि सभी 60 वार्ड में भाजपा और कांग्रेस दोनों के ही अनेक कार्यकर्ताओं ने नामांकन दाखिल कर दिया। यही वजह रही कि नामांकन का काम देर शाम तक चलता रहा जबकि नामांकन का समय दोपहर तीन बजे तक ही था।
लोकतंत्र की पहली सीढ़ी
वार्ड चुनाव को लोकतंत्र की पहली सीढ़ी माना जाता है लेकिन इस पहली सीढ़ी के लिए उम्मीदवारों ने नामांकन के समय जो भव्य प्रदर्शन किया इससे प्रतीत होता है कि कोई भी उम्मीदवार सेवा की भावना से चुनाव नहीं लड़ रहा। सभी उम्मीदवारों के साथ अनेक वाहन और सैंकड़ो कार्यकर्ता थे। चुनाव प्रचार के दौरान भी लाखों रुपए खर्च किए जाएंगे। सवाल उठता है कि जो उम्मीदवार प्रचार के लिए लाखों रुपया खर्च कर रहा है। वह उम्मीदवार पार्षद बनने के बाद वाकई सेवा करेगा। सब जानते हैं कि पार्षद बनने के बाद नगर निगम में किस तरह से काम होते हैं। कई पार्षद तो निगम में ही अपने रिश्तेदारों के नामों से ठेकेदारी करने लगते हैं।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in)M-09829071511
