अनूठा था 1990 का चुनाव

राजेंद्र हाड़ा
राजेंद्र हाड़ा
सन् 1990 का अजमेर नगर परिषद चुनाव कई मामलों में अनूठा था। सन् 1975 मे लगे आपातकाल में स्वायत्तशासी निकाय भी भंग हो गए थे। उस समय तक अजमेर में नगर पालिका हुआ करती थी। तब पालिका सदस्य को वार्ड मेम्बर कहा जाता था। अदब से लोग मेम्बर साहब कहा करते थे। वार्ड मेम्बर की उंची से उंची पहुंच यह थी कि वह अपने वार्ड की राशन की दुकान अपने नाम अलॉट करवा लेता था, ताकि परिवार की दाल रोटी का जुगाड़ हो सके। वार्ड की जनता राशन के सामान के लिए उसके चक्कर लगाया करती थी। बेचारा वार्ड मेम्बर घासलेट, शक्कर की कालाबाजारी के आरोप झेलने और इन्हीं के लेन-देन में उलझा रहता था। बाकी कामों का ठेका लेने या ठेके पर काम करने की ना उसकी सोच थी और ना ही औकात। पहनावा खादी के मुडे़ तुड़े कुर्ते-पाजामा पहनने से ज्यादा की नहीं थी। नगर पालिका तक पैदल आना-जाना ही उसकी नियति थी। तो 1990 के चुनाव इस मायने में भी अनूठे थे कि लम्बे समय बाद हुए थे। पहला अनूठापन-नाम नगर पालिका से नगर परिषद और ओहदा वार्ड मेम्बर से वार्ड पार्षद हो गया। दूसरा अनूठापन- अध्यक्ष बनने के चक्कर में कई नामी गिरामी खासकर भाजपा के हारकर राजनीति से निपट गए। तीसरा अनूठापन- वार्ड थे कुल 45 और भाजपा. कांग्रेस दोनों के जीते 22-22 पार्षद। एक सीट मिली जनता दल की शाहिदा बेग को। उन्होंने बाहर से समर्थन दिया और भाजपा ने पूरे पांच साल कार्यकाल पूरा किया। चौथा अनूठापन-अध्यक्ष बने रतनलाल यादव निहायत ही सीधे सादे थे और पांच साल तक ऐसे ही रहे। लोग आज भी उनकी सज्जनता को याद करते है, उन्होंने कोई आकांक्षा या महत्वाकांक्षा अध्यक्ष बनने की नहीं की परंतु अध्यक्ष बन गए। पांचवां अनूठापन-कांग्रेस के पार्षद सतीश बंसल, नलिन सोनेजी और अशोक जैन की तिकड़ी खूब चर्चा में रही। छठा अनूठापन-वार्ड चार लौंगिया क्षेत्र से देवकीनंदन शर्मा निर्दलीय खड़े हुए। शहर कांग्रेस अध्यक्ष माणकचंद जैन ने उनके पास दो दफा कांग्रेस टिकट का प्रस्ताव भेजा और तीसरी दफा खुद मिले परंतु देवकीनंदन शर्मा ने प्रस्ताव ठुकरा दिया, मजबूरन कांग्रेस ने नगर निगम के मौजूदा पैरोकार सत्यनारायण जोशी के भाई बृजकिशोर जोशी को टिकट दिया जिनकी जमानत जब्त हो गई। देवकीनंदन शर्मा दूसरे नंबर पर रहे, जो बाद में चार दफा अजमेर के वकीलों की पंचायत के सरपंच रहे। उस वार्ड से जीते भाजपा के भगवानदास सुजंती। सातवां अनूठापन-भाजपा ने इन चुनावों में अलवर गेट क्षेत्र के तब के वार्ड 19 से विजय मेहता को खडे़ होने को कहा और टिकट देने का वादा किया। मेहता प्रचार में जुट गए और जुलूस लेकर सिंबल लेने कलेक्ट्रेट पहुंचे तो भाजपा ने सिंबल यानि टिकट दे दिया रमेशचंद्र जैन को। सहानुभूति रखने वाले कुछ भाजपा नेताओं ने ही चुनाव चिन्ह के रूप में मेहता को लालटेन थमा दी जो लेकर वे लौट आए। हालांकि जैन भी हारे और जीते कांग्रेस के सरदार जोगेन्द्र सिंह दुआ। आठवां अनूठापन-विजय मेहता वकील थे, उनकी जगह जिस रमेशचंद्र जैन को टिकट मिला वे भी वकील थे। नौवां अनूठापन-पांच साल जिस अकेली पार्षद शाहिदा बेग के दम पर भाजपा बोर्ड पर काबिज रही, वह शाहिदा बेग भी वकील थी। दसवां अनूठापन-अजमेर की राजनीति में इतनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने वाली शाहिदा बेग इस कार्यकाल के साथ ही राजनीति को अलविदा कह गई। सक्रिय वकालत भी अब वे नहीं करती। तब के उपाध्यक्ष विष्णु चैनानी भी वकील थे। वरिष्ठ वकील कपूर चंद जैन भी चुनाव हारे। चुनाव हारने वाले वकील वीर कुमार और जीते भागीरथ जोशी को छोड़ दिया जाए तो बाकी किसी वकील कपूरचंद जैन, विष्णु चैनानी, देवकीनंदन शर्मा, रमेशचंद्र जैन, विजय मेहता, शाहिदा बेग ने इसके बाद नगर परिषद/निगम का कोई चुनाव नहीं लड़ा।

-राजेन्द्र हाड़ा

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