अब सवाल यह है की क्या पेंशन खैरात है ? शायद नहीं ! क्योंकि हमने सारे कानून और शासन व्यस्था अंग्रेजों से विरासत में ली है और अंग्रेजो ने अपने वफादार नौकरों के लिए यह सुनिश्चित किया था की आप हमारी सेवा और सुरक्षा करो हम आपको जीवन पर्यन्त सुरक्षा प्रदान करेंगे और शायद इसी कारण से सेवा निवृति पर किसी भी कर्मचारी को मिलने वाले इतने लाभ थे कि वह सेवा निवृति के बाद। सुख पूर्वक जीवन व्यतीत कर सके जिसमे पेंशन सबसे महत्वपूर्ण है ? लेकिन अंग्रेजों के इस प्रलोभन में जहां पूरी सिविल सेवा पालक पाँवड़े बिछा कर अंग्रेजों की सेवा जी जान से सेवा करते रहे वहीँ फ़ौज उनके इस प्रलोभन में नहीं। आई अन्यथा 1857 का सशस्त्र विद्रोह नहीं होता?
चूँकि सरकार का सबसे बड़ा सरकारी संघटन फ़ौज़ ही है जो कमसे कम सुविधा में भी सौंपे गए कठिन से कठिन कार्य विपरीत परिस्थितियों में करने में सक्षम है ! देश के गौरव को अक्षुण रखने में फ़ौज ही अपने प्राण निछावर कर देती है ! इसलिए फौजियों को पेंशन देना कोई खैरात देना नहीं है अपितु यह एक प्रकार का compensation यानि क्षतिपूर्ति जैसा ही है ! चूँकि एक जोर जहां। सिविल सर्वेंट पूरा जीवन सुविधा भोगी नौकरी करते हैं वहीँ फौजी का पूरा कार्य ही जोखिमवाला होता है वैसे भी फौजी को भरी जवानी में ही सेवा निवृत होना पड़ता है वे भाग्य शाली होते है जो 33 वर्ष की नौकरी पूरी कार् पाते हैं ! इसलिए अगर पेंशन की समरूपता की डिमांड फौजी करते है तो क्या गलत है ! लेकिन सुना है अब सरकार ने फौजियों की डिमांड मान ली है अब सभी फौजियों को सेवा निवृति के बाद वन रैंक वन पेंशन मिलेगा । सरकार को सद्बुद्धि आने के लिए हम फौजियों की और से धन्यवाद आभार सहित प्रकट करते हैं?
SPSingh,×Meerut