राजस्थान सरकार और ए.सी.बी. विभाग ने अतिउत्साह में सोचा तो यह था कि इस खनन घोटाले के उजागर होने से हमारी बड़ी नेकनामी होगी और केन्द्र सरकार एवं देश में हमारा नाम होगा, परन्तु आदरणीया मुख्यमंत्री महोदया के पास ऐसे कठिन समय में सरकार के पास कोई भी अनुभवी दफ्तरशाह/नौकरशाह के रूप में सही सलाहकार नहीं होने की वजह से इतनी बदनामी और दुश्मनी हो गई, जिसकी कभी किसी ने कल्पना ही नहीं की होगी। एक मिनट के लिये मान भी लो कि सरकार ने अपनी ही इत्तला पर यह सारा खनन घूस काण्ड खोला है तो ऐसा हवन किया है कि खुद के ही सारे हाथ जला लिये और यह घोटाला सरकार के गले की फांस बन गया है और अगर सारा ऑपरेशन केन्द्र सरकार के इशारे पर हुआ है, तो राजस्थान सरकार की कार्यशैली की कलाई भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के मामले में आदरणीय नरेन्द्र मोदी जी एवं अमित शाह व केन्द्र सरकार के सामने खुल गई। अगर राजस्थान सरकार के स्वविवेक से खनन घोटाला उजागर हुआ है तो आज सारी आई.ए.एस. लॉबी राजस्थान ही नहीं समूचे हिन्दुस्तान की, राजस्थान सरकार से नाराज चल रही है कि किस तरह आई.ए.एस. लॉबी की राजस्थान सरकार ने बेइज्ज़ती की है, रिसर्जन्ट राजस्थान के सफलता पर भी प्रश्न चिन्ह लग गया है। राजस्थान का श्वेताम्बर समाज और अल्प संख्यक समाज राजस्थान सरकार से काफी नाराज चल रहा है कि हमारे लोगों को चुन-चुन कर मारा है, ऐसे कठिन दौर में सरकार को सही सलाह देने वाला कोई भी वरिष्ठ, कुशल नौकरशाह सरकार के पास नहीं था, राजस्थान सरकार की कार्यशैली से तंग आकर सभी योग्य एवं कुशलतम अधिकारी प्रतिनियुक्ति पर दिल्ली चले गये और ‘‘राजस्थान में घोड़ों को नहीं मिल रही है घास और गधे खा रहे हैं च्यवनप्राश‘‘। काश आज स्वर्गीय भैरूसिंह जी बाबोसा के हाथ के नीचे काम किये हुए अधिकारी सरकार में मौजूद होते तो सरकार की यह दुर्गति ना होती, हर मोर्चे पर सरकार इतनी विफल ना होती। सरकार में दो तरह के अधिकारी होते हैं – एक समस्या पैदा करने वाले, दूसरे समस्या का निदान करने वाले, अब राजस्थान में कैसे नौकरशाह हैं आप स्वयं ही समीक्षा कर लीजिये।
राजेश टण्डन, वकील, अजमेर।
