मैंने भगवान् गणेश को स्थापित करने के लिए उन्हें सम्मान पूर्वक लाते देखा है ।
मैंने गणेश जी को ठाट बाट से पांडाल में विराजमान कर उनकी पूजा अर्चना करते देखा है ।
मैंने श्रद्धालुओं द्वारा भगवान् गणेश को छप्पन भोग का प्रसाद चढ़ाकर उनकी महाआरती उतारते देखा है ।
मैंने दस दिनों तक चलने वाले इस आयोजन में लोगो को जमकर नशाखोरी कर मौज मस्ती करते हुए देखा है ।
मैंने गणेश स्थापना के नाम पर जबरन चन्दा वसूली कर लाखो रुपये एकत्र करने वाले आयोजको को भी देखा है ।
मैंने पूजा अर्चना के नाम पर हर रोज एक श्रद्धालु को बलि का बकरा बनते हुए देखा है ।
मैंने विसर्जन के दिन डी जे की धुनों पर बजते अश्लील गानो पर माताओ बहनो को बीच बाजार नाचते हुए देखा है ।
मैंने विसर्जन के जुलूस में खुलेआम लड़कियो पर गुलाल उड़ाकर उनके साथ की जा रही छेड़छाड़ को भी देखा है ।
मैंने जुलूस में चल रहे शराब के नशे में टल्ली हो चुके भक्तो को देखा है ।
मैंने विसर्जन के दौरान एक के ऊपर एक गणेश जी की प्रतिमा को ठूसते हुए देखा है ।
मैंने विसर्जन के अगले दिन हमारे उन्ही आराध्य गणपति की हो रही दुर्दशा को देखा है ।
मैंने सफाई के दौरान निगम के कर्मचारियो द्वारा अपने पैरो तले हमारे गणपति को रौंदे जाते देखा है ।
मैंने कीचड़ भरने वाले ट्रेक्टर में जेसीबी से कचरे की तरह गणपति प्रतिमाओ को भरते देखा है ।
दोस्तों मैंने हिन्दू श्रद्धालुओं के द्वारा ही सारी सच्चाई जानते हुए भी उन्हें आस्था के साथ खिलवाड़ करते देखा है ।
हां मैंने गणपति विसर्जन के अगले दिन भक्तो के हाथो की गई अपनी ही दुर्गति पर भगवान् गणेश को मायूस हुआ देखा है ।
दोस्तों एक पल के लिए विचार करो । क्या गणेश महोत्सव के नाम पर किया जा रहा आस्था पर आघात भगवान् के साथ अन्याय नहीं है । जिन्हें हम दस दिनों तक पूजते है , उन्हें छप्पन भोग लगाते है । उनकी बाद में होने वाली दुर्दशा के लिए क्या हम जिम्मेदार नहीं है । यह कैसी आस्था है जिसके चलते हम हमारे आराध्य देव को ही पैरो तले रौंदने के लिए छोड़ आते है ।
एक बार अपने अंतर्मन में झांककर विचार जरूर करें ।
राकेश भट्ट
प्रधान संपादक
पॉवर ऑफ़ नेशन
bhut sahi lika h bhaiya ji