‘मन के गुब्बारे‘ व ‘परम्परा‘ का लोकार्पण हुआ
अजमेर/शब्द ब्रह्म उपासना है कविता। आज इसी भाव को लेकर प्राचीन काव्य परम्परा को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है। ये विचार शिक्षाविद् डॉ बद्रीप्रसाद पंचोली ने व्यक्त किये। वे कला-साहित्य के प्रति समर्पित संस्था ‘नाट्यवृंद‘ द्वारा संवेदनशीन कवि-कथाकार डॉ. राजेन्द्र तेला ‘निरंतर‘ के छठे काव्य संग्रह ‘मन के गुब्बारे‘ और प्रथम कथा-संग्रह ‘परम्परा‘ के लोकार्पण के अवसर पर अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में बोल रहे थे। शनिवार 24 अक्टूबर, 2015 को शाम 5 बजे इण्डोर स्टेडियम सभागार में आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि मदस विश्वविद्यालय के प्रो. कैलाश सोढानी ने कहा कि तेला की रचनाओं में एक नयापन है जो पाठक को आकर्षित करता है। विशिष्ट अतिथि विनोद सोमानी ‘हंस‘ ने दोनों कृतियों की रचनाओं को मन को छू लेने वाली तथा अर्चना तेला के आवरण चित्रांकन को चित्ताकर्षक बताया। संयोजक उमेश कुमार चौरसिया ने लेखक के कृतित्व से परिचय कराया। कवि डॉ तेला ने स्वागत भाषण में बताया कि उन्होंने प्रोढवय में आकर लेखन शुरू किया है।
पुस्तकों पर चर्चा करते हुए गजलगो सुरेन्द्र चतुर्वेदी ने कहा कि आज लोग संवेदनहीन हो गए हैं और इलाके संवेदनशील। कवि डॉ तेला संवेदना के सर्जक हैं। वे मानवमन की बात ही कहते हैं। गीतकार गोपाल गर्ग ने बताया कि ऐसा लगता है कि इन कविताओं में प्रकृति के कई सुन्दर प्रतीकों को उठाया गया है। डॉ बीना शर्मा ने कहा कि वे आमजन के लिए आमजन की भाषा में अपनी बात कहते हैं। कवि बख्शीश सिंह, शिक्षाविद् डॉ अनन्त भटनागर, वरिष्ठ पत्रकार एस.पी.मित्तल ने भी विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम का कुशल संचालन डॉ नवलकिशोर भाभड़ा ने किया तथा अर्चना तेला ने आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम में गाजियाबाद की कवयित्रि डॉ रमा सिंह, कथाकार जेबा रशीद, के.के.झा, संयुक्त निदेशक जनसंपर्क प्यारे मोहन त्रिपाठी, डॉ के.के.शर्मा, डॉ विमलेश शर्मा, डॉ कमला गोकलानी, पत्रकार संतोष गुप्ता, कालिंदनंदिनी, अभिनव प्रकाशन के अनिल गोयल इत्यादि अनेक प्रबृद्धजन उपस्थित थे।
उमेश कुमार चौरसिया
संयोजक
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