-खेमचन्द्र रैकवार- अपने पसीने की बूंदों से उठने वाली दुर्गन्ध को ही खुष्बू बना लिया था।सारा सारा दिन मेहनत मजदूरी करके परिवार का भरणपोसण करता रहा वह। न उसने दिन देखा न रात देखी। बच्चों की परवरिष में कभी भी कोई कमी न रह जाये…….इसलिये उसने पसीने को अपना मित्र बना लिया था।
पसीनें की टपकती बूंदो के साथ घर में बहू आ गई…………..सब ठीक ठाक चल रहा था ……तभी पत्नी वियोग हो गया । इस आकस्मिक दुर्योग से वह टूट सा गया । धीरे.धीरे उसके ष्षरीर से ताकत जाती नही……आंखे चेहरे के अन्दर सिमट गई….मुंह पतला सा हो गया और ष्षरीर से खाल लटकने लगी।
इस स्थििति में बइू ़ लडके ने उसे घर के बाहर एक टप्पर बनाकर उसमें उसका डेरा डाल दिया। अब उसकी जिन्दगी में वह टपपर ही उसका सूर्य उदय और सूय अस्त था।
रात का सन्नाटा….अंधेरी रात……सियारो केष्षोर…….. के साथ ष्याद आने वह समय …..जब धर्म पत्नि चूल्हे पर रोटी बनाती थी…तो रोटी की सौधी खुष्बू उसकी भूख बढा देती थी……. कितना स्वाद होता था प्याज और लाल मिर्च की चटनी मे। कभी कभी दाल में जब हींग का छौक लगता था तो पूरा घर खुष्बू से भर जाता था….और भरपेट भोजन हुआ करते थे।
परन्तु अब ऐसा नही है। घर में खाना कब बनता है पता ही नहीं चलता ।उसे जब मिल जाती तब खा लेता।आज उसे रोटी अखबार में लिपटी हुई मिली जो उससे चबाई ही नहीं जा रही थी। किन्तु क्या करता ।
बइू ने दरबाजा बन्द करके जब सुगन्धित खाने की पैकिंग खोली तो उसकी खुष्बू बाहर तक आकर हवा मैं तैर गई। वह बेचारा होंठों पर अपनी जीव्हा सूखे थूक के साथ फेरने लगा….और धीरे धीरे जीव्हा उसके होठों पर आकर ऐसी चिपकी की वह उठ ही न सका।