खाकी तूने क्या कर डाला,
ब्यावर का मान गिरा डाला।
घर आए चंद मेहमानों को,
बे-वजह बदनाम कर डाला।
वर्दी पर बढ़ाने को एक सितारा,
झूठा मुकदमा बना डाला।
हम निर्दोषों के केरियर पर,
काला कलंक लगा डाला।
हम हर शहर में जाते हैं,
मेहनत की रोटी खाते हैं।
स्नेह और ख्याति पाते हैं,
मान-प्रतिष्ठा संग में लाते हैं।
अगर करनी होती हमें अय्याशी,
तेरे शहर में क्यों आते..!
अपनी छोटी काशी में ही,
खुलकर मौज मना लेते।
यहां मनचलों ने जब हम पर,
अपनी गंदी नजर उठाई।
तब खाकी वर्दी वालों ने,
अपनी नैतिकता नहीं दिखाई।
एक से दूसरी होटल में जाकर,
हमने अपनी लाज बचाई।
तूने वर्दी का रौब दिखाकर,
सरेआम इज्जत उछलाई।
हम इज्जतवाले हैं साहेब,
स्वाभिमान से जीते हैं।
पढ़-लिखकर अच्छा बनने को,
खून के आंसू पीते हैं।
सारे शहरवाले हैं खामोश,
हम रो-रोकर हो रहे बेहोश।
किसको बताएं अपनी बात,
थाने में कैसी गुजरी रात!
आपबीती नहीं बता सकते,
शब्दों में नहीं सुना सकते।
जो जख्म मिले हैं हमें यहां,
वो तुमको नहीं दिखा सकते।
काश उस रात हमारे साथ,
पुलिसवाले की बेटी होती,
अपने बाप की करतूतों पर,
फूट-फूटकर आंसू रोती।
जनता हमारा साथ निभाओ,
सच के साथ आवाज उठाओ।
अपना बेटा-बेटी मानकर,
मानवता का फर्ज निभाओ।
रचनाकार : सुमित सारस्वत ‘SP’
मो. 09462737273