आश्चर्यजनक रूप से वो बच्चा तो सर फोड़ता ही है एक गुंडे का, वो युवती भी पास पड़ा एक डंडा उठकर गुंडों को धोना शुरू कर देती है !
आप सोच सकते हैं कि ये फ़िल्मी दृश्य था, ऐसा सच में नहीं होता होगा । लेकिन एक गाँव में एक युवक को पीट रहे दबंगों को देखा था । युवक के माँ बाप के चीखने चिल्लाने पर गाँव वाले तो नहीं आये उसकी नव विवाहिता पत्नी अचानक गुंडों पर टूट पड़ी । पता नहीं कैसे लड़की लाठी अच्छी चला लेती थी ! 8-10 तगड़े आदमियों को उसने दौड़ा दौड़ा कर मारा था । बस ड्राइवर और क्लीनर कोई मामूली शारीरिक क्षमता के लोग नहीं होते । दिन भर का शारीरिक श्रम उन्हें आम आदमी से कहीं तगड़ा बना देता है । एक “निर्भया” ज्योति सिंह से निपटने के लिए ऐसे 4-5 लोग लगे । आश्चर्य है ! लड़कियां तो कमजोर होती हैं ना ?
ये सवाल दिमाग में इसलिए आते हैं क्योंकि ऐसे हमलावर हमेशा रात के अँधेरे में, या अपने शिकार को अकेला देख कर उसपर नहीं टूट पड़ते । ये अरशद आलम जैसा कोई JNU का असिस्टेंट प्रोफेसर भी हो सकता है, जिसने इंडियन एक्सप्रेस से लेकर आउटलुक तक में नारी उत्थान के दर्ज़नों वामपंथी लेख लिखे हैं । ये मुंबई वाले आर्टिस्ट चिंतन उपाध्याय जैसा कोई वामपंथी क्रन्तिकारी भी हो सकता है । ये पचौरी जैसा हो सकता है जिसे हाल में ही विदेश जाने की छूट मिली है । ये तेजपाल जैसा हो सकता है जो बेल पर बाहर हैं, जिनकी हरकत आपने टीवी पर देखी थी । भेड़ की खाल में छुपे ऐसे भेड़ियों की कोई कमी नहीं है । फिर जब मदद मांगो तो न्याय व्यवस्था भी अच्छी है हमारी । बगल में बैठे मुहम्मद अफ़रोज़ को आप तबतक नहीं पहचान सकती जबतक वो आपपर हमला ना कर दे ।
याद रखिये आत्मरक्षा की लड़ाई कोई नियमों से बंधी कुश्ती या बॉक्सिंग का मुकाबला नहीं होती । आपकी शारीरिक क्षमता का उन्नीस बीस होना वहां मायने नहीं रखेगा । पुलिस या अर्धसैनिक बल जब आत्मरक्षा की ट्रेनिंग स्कूल-कॉलेज में देते हैं तो सीखिये की क्या सिखाया जा रहा है । हो सके तो जुडो-जूजूत्सु लड़कियों को बचपन से सिखाइये । इन दोनों में शारीरिक बल की ज्यादा जरुरत नहीं होती । चाकू रखना और चलाना सीखिये । चाकू (स्विच ब्लेड) आपकी नेल पॉलिश या लिपस्टिक जितनी कीमत पर amazon या flipcart पर मिल जायेगा । आत्मरक्षा लिए खुद ट्रेनिंग लीजिये, अभ्यास कीजिये, हर बार कोई बचाने के लिए होगा ये जरुरी नहीं है ।
बाकी अगर नेलपॉलिश के जाने का या पसीने से मेकअप बिगड़ने का डर ज्यादा हो तो वो भी ठीक ही है ।
अमित भट्ट
पुष्कर रेस्क्यू कमिटी