तीर्थ गोरानीपुष्कर में कपड़ा फाड़ होली खेली गई और पुलिस लट्ठ लेकर पुष्कर से बाहर वालों को कस्बे में घुसने से रोकती रही. अजमेर या अन्य शहरों ।के युवा पुष्कर की और क्यों दौड़ पड़े ये तो समझ में आता है मगर पुलिस वहां किसकी हिफाजत कर रही थी ये समझना जरूरी है. वहां ऐसा क्या हो रहा था जिससे बाहर वालों से खतरा था ? क्या वहां हो रही कपड़ा फाड़ होली वहां की संस्कृति का हिस्सा थी जो सदियों से हो रही है ? पिछले कुछ सालों से शुरू इस वाहियात चीज का प्रचार सोशल मीडिया पर कर पुष्कर में पर्यटक तो जुटा लिये गए और होटल व अन्य लोगों की चांदी हो गयी. भिनाय-ब्यावर की कौडामार होली तो समझ में आती है मगर ये कपडा फाड़ होली किस पुराण से निकालकर लाये पुष्करवासी ? केन्द्र सरकार के इशारे पर फौज को बाबाओं की सेवा में लगा दिया गया मगर पुष्कर में पर्यटन व्यवसायियों की सेवा में पुलिस किसके कहने पर जुटी रही ?
पत्रकार तीर्थ गोरानी की फेसबुक वाल से साभार
प्रवीण दीक्षितPraveen Dixit बिलकुल सही मुद्दा उठाया है। अस्सी के दशक में हिप्पीवाद के दौर में हेरोइन बिकने लगी थी। कुछ निकम्मे लम्पट युवाओं ने नशेड़ी श्वेतांग प्रभुओं को तीर्थराज में ठहराना शुरू कर दिया। बस, संस्कृति का पतन तब से ही शुरू हो गया था। अब कपड़ा फाड़ होली। शर्म आती है। पुरोहित समाज कैसे इस अश्लील तमाशे को देख रहा है। कार्तिक स्नान भी अब मवेशी मेला और सरकारी तफ़रीह के अवसर में बदल चुका है। धर्म, आस्था, भक्ति का पर्यटन तीर्थराज और कहां ले जाएगा।