भारतीय दंड प्रक्रिया की धारा 124A

sohanpal singh
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पता नहीं हमें ऐसा क्यों लगता है की केंद्र की वर्तमान सरकार के मंत्रीगण घरेलु घटनाओं की सफाई विदेशी धरती पर ही क्यों देते है ? क्या यह कृत्य उनकी हीन भावना को दर्शाता है क्योंकि पहले मोदी जी ने कहा कि ” जब भारत में विरोध होता है तो यह समझो कि मोदी ने चाभी कस दी है ” अब अपने वित्त मंत्री अरुण जी ने मेलबर्न में कहा की ” ,हैदराबाद विश्वविद्यालय और JNU में छात्रों के खिलाफ जो कार्यवाही की गई है वह सही है ?” कारण यह बताते है कि इन लोगों ने संसद पर हमले के दोषी जिसको फांसी दी गई थी उस फांसी का विरोध किया था ? और दोषी से सहानुभूति प्रकट करने पर JNU के कई शोध के छात्रों पर देश द्रोह के मुकद्दमे ठोंक दिए थे जो अब जमानत पर छूटे है? हैदराबाद का किस्सा तो और भी अलग था हैदराबादयूनिवर्सिटी कोई स्कूल कालेज नहीं है वह विश्वविद्यालय है जहाँ छात्र छात्राएं शोध करते हैं ? जहाँ abvp की छात्र इकाई और अन्य राजनितिक समर्थित छात्र इकाइयों के आपसी संघर्ष में केंद्रीय मंत्रियो के दखल के बाद की कार्यवाही के फलस्वरूप शोध के छात्र रोहित ने आत्महत्या कर ली थी ? लेकिन सरकार ने इन अवैध कार्यवाही को छुपाने के लिए घटना को देश द्रोह से जोड़ दिया?

जबकि इसी देश में खुल्लम खुल्ला देश द्रोह करने वाले उनके अपने संघटन के लोग ( नाथू राम गोडसे जिसने महात्मा गांधीकी हत्या 30 जनवरी 1948 को की थी ) गोडसे का मंदिर बनाने वालों और गांधी की हत्या करने वालों का महिमा मंडन करने वालो पर आजतक कोई कार्यवाही नहीं की ? यह कैसा भेदभाव है ? चूँकि इन विश्विद्यालयों में विदेशी छात्र भी शोध करने आते है शायद इसी लिये सरकार के मंत्रियों को विदेशी धरती पर सफाई देनी पड़ती है ? वैसे भी देश भक्ति तो एक भावनात्मक मुद्दा है जो व्यक्ति की आस्था से जुड़ा हुआ है ? कानून के डंडे से व्यक्तियों को डराया धमकाया तो जा सकता है , देश भक्ति नही सिखाई जा सकती ? सरकार की आलोचना देश द्रोह कैसे हो सकती है क्योंकि सरकार को हम चुनते है और हमे अपने कार्य की आलोचना और प्रसंसा का पूर्ण अधिकार भी है क्योंकि भारतीय दंड सहिंता की धारा 124 A अंग्रेजों के द्वारा 1860 में बनाई गई थी जिसका उपयोग स्वतंत्रता सैनानियों के विरुद्ध किया जाता था जब देश परतंत्र था ? लेकिन स्वतंत्रता के बाद भी इस धारा को ज्यों का त्यों बनाये रखने का केवल एक ही कारण है कि शासक दाल द्वारा अपने विरोधियों को ठिकाने लगाने में कानून सहायक है ? स्वतंत्र भारत में कानून की इस धारा का कोई औचित्य नहीं है क्योंकि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन होता है ?

एस.पी.सिंह, मेरठ।

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