…तो क्या ‘आरओ’ का शुद्ध किया पानी, धीमा जहर घोल रहा है, हर दिन

IMG_20160508_113438-1रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून ।
यह पंक्तियाँ आपने जरुर पढी होंगी। यदि नही तो – जीवन काल में सुनी तो जरूर होंगी ही। यों तो पानी के मायने बहुतेरे हो सकते हैं लेकिन यहाँ हम केवल उस जल की बात कर रहे हैं जिसके बगैर जीवन की गाड़ी एक इंच भी नहीं चल सकती। अभी ताजा ताजा ही उगी एक खबर ने सबके होश उड़ा दिये हैं। यों यही खबर सोशल मीडिया पर भी तैर रही है।
खबर यही कि, रोज रोज स्तेमाल किया जा रहा ‘आरओ’ का पानी ,आपको मौत के मुँह मे ले जा सकता है। यह बात, दुनिया भर के वैज्ञानिक और शोधकर्ताओं से प्राप्त जानकारी के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन की बतौर चेतावनी सामने आई है। चौकाने वाली बात यह कि, ‘आरओ’ जहाँ एक ओर पानी से दूषित बैक्टीरियाज से निजात दिला रहा होता है, वही दूसरी ओर पानी से शरीर को मिलने वाले जरूरी कैल्शियम व मैग्नीशियम का भी 92 से 99 प्रतिशत तक सफाया कर डालता है। ऐसे में शरीर में अनिद्रा, थकावट, और किसी काम के प्रति नीरसता जैसे लक्षण घर करने लगते हैं।और बीमारी की वजह बन जाते है। कैलशियम हड्डियों की मजबूती के लिये अति जरूरी तत्व है ।वही गायब हो रहा है।
सवाल यह भी कि, आज आदमी, विज्ञान की कसौटी पर खरा उतरने की जितनी कोशिश कर रहा है, वह उसकी जकड़न और उलट परिणामों को जाने अनजाने स्वीकार ही रहा है। रोज मर्रा की भागमभाग, भौतिकवाद की चकाचौंध और अधिक धन अर्जन या संग्रह की प्रवृत्ति इतनी अधिक सर चढकर हावी है कि, आदमी को घर परिवार अथवा स्वयं के बारे मैं इन ‘छोटी छोटी’ बातों के लिए सोचने की फुर्सत ही नही है ?
महँगी और अति सुविधाजनक कारो का शौक क्या हमें हर रोज की हो रही दुर्घटनाओं को रोक पाने में कारगर साबित हो रहा है।शायद नहीं। और तो और लग्ज्युरियस वाहनों के लिये शहरो मे पार्किंग की जगह ही नहीं बच रही है। बहरहाल यह सही है, कि विज्ञान.ने हमे बहुत आगे ला खड़ा किया है। लेकिन इन आविष्कारो के अपने जितने फायदे देखे जा रहे हैं, उतने ही कुछ नुकसान की भरपाई भी हमे ही करनी पड़ रही है।
चुनी हुई सरकारें अब किसी प्राईवेट कम्पनी जैसा सलूक कर रही हैं , पीने का स्वच्छ जल और ताजी हवा के भी लाले पड़ने लगे हैं , जमीनी जल स्तर ही हर रोज घट रहा है। और सड़को का प्रदूषण आए दिन आक्सीजन लील रहाहै। हर शहर की यही कहानी है। दुखी है तो बस आम आदमी। आज भी राजस्थान के अनेक गाँवो मे लोग फ्लोराईड युक्त पानी पीने को मजबूर है। जल स्वावलम्बन पर करोड़ो रूपये बर्बाद करने का ऐसा हश्र होगा। सोचा ही नहीं गया कभी। चाँद पर घर बसाने की तैयारी कैसा गुल खिलायेगी हम अभी जानने से कोसों दूर ही है।

शमेन्द्र जडवाल
शमेन्द्र जडवाल
…तो रोजमर्रा का ऐसा धोखा खा रहा है यहाँ आदमी, जागने का वक्त है, अभी भी। जरा जाग कर घर परिवार का जीवन बचाने की जुगत मे जुट जाईये
वर्ना बहुत देर हो चुकी होगी सबके लिये। इन कंक्रीट के बसे नये जंगल में तो हमें एक दूजे से मिलने का समय भी खोजना पड़ रहा है। वाहरे विज्ञान, तेरी जय हो। भगवान ही है मालिक।
shamendra jarwal@blogspot.in

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