वर्तमान की घटना से मुझ को सन 1967 की राजस्थान के दौसा संसदीय सीट के निर्वाचन की याद आई जब कांग्रेस ने गुजर बाबुल क् क्षैतर होने से अजमेर के हनुमन्त सिंह रावत को टिकट दिया तथा विपक्ष रने पूंजीपति राय को टिकट दिया और वह जीता भी लेकिन अगले वर्ष ही उनकी मौत के कारण उप चुनाव कराया गया । तब रावत साहब ने पु:न टिकट चाहा परन्तु विपक्ष ने जयपुर राजघराने के राजकुमार को टिकट दिया, तब हमने रावत सा. को पुन: टिकट दिये जाने की माँग की तो सुखाडिया जी ने दौसा के स्थानीय कार्यकर्ता व वक़ील नवल किशोर शर्मा को टिकट दिया व चुनाव संचालन का प्रमुख रावत सा.को बनाया। अर्थात सामान्य कार्यकर्ता को मौक़ा दिया। नवल जी आगे एक अच्छे सासंद, महामंत्री , मंत्री , प्रदेशा अध्यक्ष व गुजरात के राज्यपाल बने। तब सामान्य कार्यकर्ता पार्टी की रीढ़ की हड्डी था तो केन्द्र व राज्यों में कांग्रेस की सरकार रही तथा जब से कार्यकर्ता का मात्र उपयोग दरी बिछाने , चुनाव में वोट दिलवाने में किया जाने लगा व सरकार बनने के बाद पार्टी के मंत्री या मुख्य मंत्री से काम करवाने बाबत मिलने तो दूर मात्र औपचारिक मिलने के लिये भी बल्लियों के पीछे पुलिस की निगरानी में खड़ा कर क्षण क्षण को केवल दर्शन देने की औपचारिकता की जाने लगी तो कार्यकर्ता का मनोबल टूटता गया तथा वह घर बैठता गया और उसकी जगह अवसरवादियों ने ले ली। परिणामत: पार्टी कमज़ोर होती गई लेकिन नेतृत्व का ध्यान इस ओर नही गया और न ही आज जा रहा है ।अत: परिणाम सामने है। आशा है पार्टी में कार्यकर्ताओं के प्रति व्यवहार में परिवर्तन आये अन्यथा परिणाम निराशाजनक ही रहेंगें।
Satya Kishore Saksena ,Advocate AJMER (Rajasthan) M -91- 9414003192
