आइना

रश्मि जैन
रश्मि जैन
“आखिरी पीरियड खाली होने की वजह से, रचना अकेली ही कॉलिज से घर के लिए चल पडी…. वरना रोज़ तो सहेलियों के साथ ही घर जाती थी”…..
“रास्ते में, कुछ मवाली लड़को की ‘फब्तियां’ अक्सर सुननी पड़ती थी… पर सबके साथ होने पर कोई कुछ करने की हिम्मत नही कर पाता था… आज रचना को अकेले आते देख, दो लड़के उसके पीछे चल पड़े और रचना पर अश्लील फब्तियां कसने लगे”….
“तुम लोग क्यूँ परेशान कर रहे हो मुझे, क्या बिगाड़ा है मैंने तुम्हारा , चले जाओ यहां से , मन ही मन डरते हुए रचना के मुँह से इतने शब्द निकले ही थे,.. ‘कि एक लड़के ने उसका हाथ पकड़ लिया… अब दोनों उसे तंग करने लगे… दूर-दूर तक सुनसान रास्ता, कोई उसकी सुनने वाला नही… कोई मदद करने वाला नही… वो दोनों रचना को एक सुनसान खण्डहर में ले गए और फोन करके अपने दूसरे साथियों को भी वहां बुला लिया”….
“बेचारी असहाय रचना, इंसानियत की दुहाई देते अपनी इज़्ज़त की भीख मांगती रही,… पर उन दरिंदों ने उसकी एक ना सुनी ,.. रचना की अस्मत लुटती रही, पुकारती रही अपने भाई को… खुद को बचाने के लिए , कुछ देर बाद दो लड़के और वहां आ गए… वो भी अपने साथियों के साथ दुष्कर्म में शामिल हो गए”…..
“अब रचना करीब-करीब बेसुध हो चुकी थी, अंत में जो लड़का अपनी कुत्सित हवस को शांत करने के इरादे से रचना के पास पंहुचा…. तो उसका दिमाग घूम गया वो लड़का जिसका नाम रचित था , उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गई…. शायद आज उसे दुसरो की पीड़ा का अहसास होने लगा था… जो दुष्कर्म वो अपने साथियो के साथ मिलकर करता आया था, जिसमे आज वो भी बराबर का शामिल था”….
आत्मग्लानि का बोझ बर्दास्त ना कर सका दोनों हाथो से सर को थाम लिया, उसके सामने ही उसकी दुनिया लूट चुकी थी,… रचित अपने पैरों पर खड़ा ना रह सका रचना के पास गिर पड़ा….
” बेसुध हो चली रचना ने, बमुश्किल अपनी आँखे खोली और खुद को छोड़ देने के लिए दोनों हाथ जोड़े तो सामने रचित को देखकर बस इतना ही कह पाई,….
“भाई तुम भी”…..???
रश्मि डी जैन
नयी दिल्ली

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