आधुनिक महाभारत

sohanpal singh
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हुआ यूँ कि धृष्टराष्ट्र की उपस्थिति में जब द्रोपदी ने ज्ञान और शिक्षा की देवी को निर्वस्त्र करना चाहा तो ज्ञान की देवी सरस्वती के अंगवस्त्र कई स्थानों से फट गए इतना ही नहीं उसके अंग भी लहू लुहान हो गए , भरे दरबार में माया की देवी ने द्रोपदी पर मनमानी करने और शिक्षा की देवी को अपमानित करने का आरोप लगाये और कहा वो कन्हैय्या जिसने एक समय द्रोपदी का तन ढकने के लिए साड़ियों का पहाड़ बना दिया था उसीके नाम रूपी सरस्वती के मानस पुत्र कन्हैया तो द्रोपदी के आदेश पर जेल में ठूंस दिया गया तो द्रोपदी आगबबूला हो गई और धृष्टराष्ट्र के सामने ही , यहाँ तक कह दिया की मैंने कोई अपराध नहीं किया है पिछले साठ वर्षो में इस शिक्षा की देवी ने अपने तन से वस्त्र ही नहीं बदले है यह कपड़ों के ऊपर कपडे धारण करती रही है , मैंने तो इस देवी सरस्वती के केवल पुराने कपडे उतार के नए भगवा वस्त्र पहनाने की कोसिस की है मैंने कोई अपराध नहीं किया है । और शिक्षा की देवी सरस्वती का ईवस्त्र बदलने का आदेश मुझे किसी ने नहीं दिया यह तो ‘भागवत’ पुराण में लिखा है और लिखे हुए को मिटाना मेरे बस में नहीं , अगर देवी माया मेरे उत्तर से संतुष्ट नहीं है तो मैं अपना शीश काट के उनके कदमो में रख दूंगी ? देवी माया ने कहा मैं आपके उत्तर से संतुष्ठ नहीं हूँ कृपया अपना शीश मुझे दे दें ? पूरे दरबार में खलबली मचना स्वाभाविक ही था लेकिन अंधे धृष्टराष्ट्र देखते कैसे वो तो संजय उनको आँखों देखा हाल बताता था । बहुत यत्न के बाद दो माह बाद बहुत गहन विचार विमर्श के और बदनामी के बाद धृष्टराष्ट्र ने संजय को तलब कियाऔर पूंछा कि संजय तू मुझे ये बता की तू मुझे घटनाओ की जानकारी सही समय पर क्यों नहीं देता ? अब संजय क्या जवाब देता चुप रहा ! अब धृष्टराष्ट्र को अपने कुनबे की याद आना स्वाभाविक ही था तुरंत सन्देश भेजकर द्वारिका से मोटा भाई विदुर को बुलाया विचार विमर्श के बाद तय हुआ की परिवार के सभी सदस्यों को दुबारा से काम और कार्य क्षेत्र का बंटवारा किया जाय गिनती करने पर ज्ञात हुआ की ये कुल 62 है पुरे 100 भी नहीं ,तुरंत 20 लोगों सपथ दिलाकर कार्यभार सौंप दिया । और सब को एकत्र करके कडा सन्देश दिया कि अबसे आगे मैं किसी की भी गलती को !स्वीकार नहीं करूँगा ? धृष्टराष्ट्र ने तुरंत ही संजय से दूर संचार व्यवस्था का सारा भार ही छीन लिया और जयंत को भार सौंप दिया उधर द्रोपदी को कहा की तुमको कपडे उतारने और फाड़ने का बहुत शौक है इस लिए मैं आज से इस दरबार का कपडा भण्डार ही तुम्हे सौंपता हूँ चाहे जितना बनाओं चाहे जितना फाड़ो, बेचो या खरीदो । अब तुम्हे अपना शीश नहीं कटाना पड़ेगा ? इतना सबकुछ करने के बाद वे अपने विशेष विमान से अफ़्रीकी देशों की यात्रा पर निकल लिए ?

एस.पी.सिंह, मेरठ।

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