धरती माता, प्रकृति परमात्मा एवं मानवता की सेवा का सहज एवं सुलभ साधन है

वृक्षारोपण – भागवत भ्रमर आचार्य मयंक मनीष
भगवान की लीलाओं ओर कथाओं में सशंय करना अनूचित है। – भागवत् भ्रमर मयंक मनीष

DSC_0165अजमेर/२७ जून २०१६ बुधवार/शहर के सौहार्द, शान्ति, जनकल्याण, एवं आध्यात्मिक जाग्रति हेतु हाथी भाटा लक्ष्मीनारायण मन्दिर में चल रही भागवत कथा में भगवान कपिल के जन्म एवं उपदेश वह सती जी के जीवन संदेश, विवेक द्वारा मोक्ष का वर्णन, जीवों की तामसी गति का वर्णन, ध्रूव जी की कथा एवं भगवान ऋषभदेव के परलोक गमन की कथा कही।
धू्रव जी कथा में कहा कि जिस पर भगवान प्रसन्न है उसेस सभी प्रसन्न रहते है ओर भगवान को प्रसन्न करने के लिये सर्वप्रथम स्वयं सदैव प्रसन्न रहो निन्दा, झूठ कपट का सर्वथा त्याग कर गृहस्थ में संत की तरह रहने की कला श्री मद्भागवत जी सिखाती है। कथा में आचार्य मयंक मनीषी जी नेक कहा कि सती जी के जीवन त्याग से यह सन्देश मिलता है कि भगवान की लीलाओं और कथाओं में संशय एवं अविश्वास न करें इसे जीव को कष्ट होता है। जिज्ञासा से भक्ति प्रशस्त होती है और संशय से विनाश होता है। कथा में गृहस्थ जीवन का मार्ग दर्शन गृहस्थ आश्रम का वर्णन, आदि का वर्णन किया ओर कहा कि जिन्हें भगवान श्री कृष्ण की लीला कथा के रस का चसका लगा गया है उन्हें कुलीनता की स्थिति समूचित संस्कार की और बड़े-बड़े यज्ञ भागों में दीक्षित होने की क्या आवश्यकता ै। स्वयं यदि भगवान की कथा का रस नहीं मिला, उसमें रूचि न हुई तो महाकल्पों तक बार-बार ब्रह्म होने से ही क्या लाभ ? मुख्य यजमान वासुदेव मित्तल जी ने भागवत का पूजन कर आशीर्वाद लिया।


भवदीय

उमेश गर्ग
मो. 9829793705

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