ओम माथुरऐसा केवल हमारे देश मे ही हो सकता है। जहां एक भी क्रिकेट टेस्ट मैच नही खेलने वाले टेस्ट टीम चुनने के लिए सलेक्टर बना दिया जाता है। जहां केवल छह टेस्ट मैच खेलने वाले प्रसाद को सलेक्शन कमेटी का चेयरमैन बना दिया जाता है। जहां बीसीसीआई सुप्रीम कोर्ट के निर्देशो पर बनी जस्टिस लोढ़ा कमेटी को भी ठेंगा सकती है। जहां बार बार विवादों के बाद भी अधिकांश राज्य क्रिकेट संघो पर नेताओं का कब्ज़ा है। बीसीसीआई ने क्रिकेट से इतनी ाकमाई कर ली है कि ये न सरकार को कुछ समझती है,न कोर्ट को। आखिर समझें भी क्यों,यही तो एक वो जगह हैं, जहाँ कोई किसी भी पार्टी का हो,बिना विवाद एकजुट रहते। बिल्कुल उस सिद्धांत पर की खाओ और खाने दो। बीसीसीआई पर जब भी लगाम लगाने की कोशिश की गई क्रिकेट मे मौजूद नेताओं का गिरोह एकजुट होकर खिलाफत पर उतर आता हैं। कोई पोल ना खुले इसीलिए बीसीसीआई को आरटीआई के दायरे मे नहीं आने दिया गया। क्रिकेट मालामाल और बाक़ी खेल कंगाल होने क़े कारण ही देश अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर खेलों मे पीछे है। रियो ओलंपिक मे मिले केवल दो मैडल यही कहानी कहते हैं।