नगर निगम भले ही सफाई का कितना ही दावा करें। हर साल करोड़ों रूपए के ठेके इसके लिए दें,लेकिन इस मर्ज की दवा नहीं हो रही है। सड़क किनारे लगे गंदगी के ढेरों में मुंह मारते सूअर और गाएं हर कहीं भी,कभी भी दिख जाते हैं। और खुले में शौच की हालत तो और भी खराब है। जहां-जहां सड़कों के किनारे घुमंतू किस्म के लोग रहते हैं,वहां आसपास से सुबह गुजरना भी भारी पड़ता है। इन लोगों ने सड़क के किनारों को ही शौचालय बना लिया है। और तो और अजमेर की ऐतिहासिक आनासागर झील भी खुला शौचालय का विस्तृत रूप बन गई है। रीजनल कॉलेज के सामने बनी नई चौपाटी और सागर विहार कॉलोनी के पीछे बसी कच्ची बस्तियों में रहने वाले सैंकड़ों लोग झील में शौच त्याग करने रोजाना जाते हैं। हालत ये है कि अब तो नई चौपाटी पर मॉर्निग वॉक करने वाले भी बदबू से परेशान होकर घूमने का स्थान बदल रहे हैं। जो हजारों लोग जो फुटपाथ पर ही जिन्दगी गुजार रहे हैं,जाहिर हैं उनके लिए शौचालय नालियां,रेल पटरियां,खाली पड़ी जमीनें जैसे स्थान ही शौचालय बन जाते हैं। शहर के बीच में बसे अनेक मौहल्लों में भी ये स्थिति कायम है। लेकिन विडम्बना देखिए,फिर भी अजमेर शहर को खुले में शौच से मुक्त घोषित किया जा चुका है। जहां कही प्रशासन ने सार्वजनिक शौचालय व मूत्रालय बना रखें हैं,वहां पानी का बंदोबस्त ही नहीं है। ऐसे में उनका उपयोग कोई कैसे ले?
लेकिन गंदगी के लिए हम लोग भी कम दोषी नहीं है। खुद का घर साफ रखने की जद्दोजहद में शहर की परवाह किसे हैं। घर के पास अगर खाली प्लॉट है,तो फिर कचरा दूर जाकर कचरा पात्र में फेंकने की जरूरत कहां हैं। एक थैली में डाला और घर से ही पड़ोस में उछाल दिया। ये तो तय है कि जनता से जुड़ी समस्याओं को केवल प्रशासन,सरकार व कानून बनाकर दूर नहीं किया जा सकता। इसके लिए खुद जनता का इसके लिए दिल से जुड़ना जरूरी है। लगता है अभी तक इन दोनों अभियान से लोग या तो जुड़े नहीं हैं या पुरानी आदतें जुडने नहीं दे रही है। फिर सफाई कोई समयावधि में पूरी होने वाली नहीं है। इसके लिए कुछ दिनों के अभियान की नहीं हमेशा के लिए अभियान की जरूरत है।
