’मोहन थानवी’
दिल-दिमाग अ’र दुनिया री बात्यां निराली हुवै। कोई सेठ-साहूकार गरीब-गुरबै री
मदद नीं करै तो कोई इचरज री बात कोइनी। मजबूर दूसरै मजबूर री मदद करै तो
लोग बात्यां बणावै। इचरज करै। इणी भांत री अेक बात सुराज गांव में हुयगी।
लोग कैयां सूं रैया कोइनी कै, पांगळी अ’र परबत लांघै। असल बात री टोह कोई
ली नीं। बस, दुनिया री आ ही बात, दिल सूं काम करण वालां स्यूं अलग हुवै। दिमाग
वाला तो फेर भी बात री गहराई में जावै। सुराज गांव में मामलो बिलकुल
साधारण ही हो। पण हो लोगां रै सुभाव नै सामै लावण वालौ।
गांव वाला नै दो दिनां सूं चैन इ नीं आय रैयो हो। वजै ही, मिन्दर रै लारै
रैवणवाली डोकरी मूलीबूआ गांव में कुओं खुदावण सारूं सगलां रै सामै
प्रधानजी नै दस हजार रुपिया दिया हा। असल में तो मूलीबूआ कनै दस हजार रुपिया
होवैला, ओई कोई सोच कोनी सकै। लारलै पांच बरसां सूं तो मूलीबूआ
घर-घर सूं मांग’र खांवती ही। दस बरस पैली उणरो परिवार अेक बस दुर्घटना में
खपग्यो। मूलीबूआ दुनिया मांय अेकली रैयगी। सरकार उणनै कुल तीस हजार रुपिया
सहायता रै नांव माथै झला दिया। सरकार नै कुण समझावै, कोई री जिन्दगाणी तीस
हजार रुपिया सूं तो पार पड़ै कोइनी। अठै तो बात मूलीबूआ री है। बापड़ी… 55
बरसां री ही अ’र आज 65 नै लांघ रैयी है। तीस हजार रुपिया मूं स्यूं भी उणनै
25 ही हाथ में मिल्या। इतरा रुपिया कद तांई सागै चल सकै! तीन-चार बरस में इ
साफ हुईग्या। उणरै बाद मूलीबूआ गांव रै लोठां सेठां रै घरै बरतन-झाडू
कर्यो। बूढ़ो सरीर, पार पड़ी कोइनी। दो बगत पेट री आग बुझावण खातर भी
मांगण री नौबत आयगी। इण हालत में भी मूलीबूआ गांव में कुओं खुदावण
सारूं दस हजार रुपिया दिया है, आ तो बात ही इचरज री है। जणै इ तो गांववाला
भेळा होय’र आ ही बात कर रैया हा।
नौरतन बोल्यो – पांगळी अर परबत लांघै! इयां कीआं हुयग्यो रै भाया!
रुघो जवाब दियो – ओ म्हारी सोच रौ काम कोइनी रै। बीं डोकरी नै कुण तो
समझावै।
हरखो खुद इचरज में हो, बो पूच्छयो – पण बताओ सरी। सांच-सांच हुयो
कांई!
नौरतन कैयो – भाया, आ मूलीबूआ तो गांववाला ने थाप मारी है। अपां कमावां
खावां, पण गांव खातर कांई करां! कदैई एक रुपियो भी गांव खातर खर्चीओ
कोइनी।
नौरतन री सांची बात सुण रुघे नै ताव आइग्यो। सांची बात कईयां नै ताव दिरा
देवै। गांववाला तो फेर भी भोला जीव है। सहरवालां नै इ देखल्यो। ताव में
आंवते ही गांव रा गांव उजाड़ देवै। मिनखा री सोच इ इण भांत री हुयोड़ी
है। पहली पेट पछै सेठ। आज दिनूगै भी म्हारौ इ पूत म्हनै इ कैवंतो हो, पहली
पेट पूजा, पछै काम दूजा। पण अठै तो अपांरै गांव रा भोला जीव आपस में
डोकरी रै दस हजार रुपिया री बात कर रैया हा।
रुघो ताव सूं बोल्यो – भाया याद राख्या। पांगळी डाकण घरकां नै खा।
2 पागळी
अ’र…
हरखो हिवड़ै रो साफ मिनख है। उण रै मन में मूलीबूआ इ नीं बल्कि हरेक
गांववाला खातर पिरेम है। अठै जद मूलीबूआ री नीयत माथै बात आयगी तो हरखो
बोल्यो – ना भाया। मूलीबूआ नै डाकण कैया सूं पैली सौ बारी सोच लिया।
नौरतन चुटकी ली – क्यूं रै हरखा, कांई जूनी-पुराणी याद आय रैयी है कांई!
उणरी बात माथै चौपाल में अेक ठहाको लाग्यो, पण इण ठहाके री आवाज सूं
पीपल माथै बैठ्योड़ा पंछी कोनी उड्या। ना ई जोर री हवा चाली। बिजली भी
नीं चिमकी। क्यूंकि दुनिया री रीत है, पांच पंच मिल कीजै काज, हारे-जीते आवै नै
लाज। खोटी बात माथै भी कोइ नै लाज क्यूं आवंती। जद कि पापियां वास्ते
कैयोड़ो है, –
पांच पंच छट्ठो पटवारी, खुलै केस चुरावै नारी।
फिरतो-घिरतो दांतण करै, आंरा पाप सूं कीड़ा मरै।
गांववाला नै दुनियादारी री अै बात्यां सहरवालां सूं घणी आवै। चौपाल में हणै
हणै इ रामू सिन्धी पूग्यो हो, उण सगळां सूं बात पूछी अ’र तुरत-फुरत आपरो
निर्णय बता दियो – भायला, अठै तो म्हानै लागै कै – काणीअ जे विहांव में संकट
घणा।
हरखे उण सूं पूच्छयो – ओ कांई केवै रै, मतलब तो बता।
रामू सिन्धी बोल्यो – भाया, चोखे काम खातर डोरी आपरी कमाई गांववाला नै
सौंप दी, फेर भी लोग बात्यां बणा रैया है। डोकरी नै ठा कोनी कै, हिकु न
नो नवं बलाउं टारे।
रुघो चुप कींआं रैवंतो, बोल्यो – अरे सांई, सिन्धी में की ंना बोलो, ठा
ई पड़ै कोइनी।
रामू समझग्यो, बात सांची है। भाषा हिन्दी हो या सिन्धी या राजस्थानी। बात तो
लोगां री जुबान में इ करणी ठीक रेवै। सगळां नै समझ तो आवै। जियां कै बिरखा
वास्ते कैइजे कै पांच पांच धड़ी रा मोर कुरळाय-कुरळाय मरग्या जद पाव रै पपइये
री कांई चिकारी! अेकै में इ फायदो है। पांच आंगळियां पूंचों भारीं।
देस-काल री रीत सारू चालणोई अेकौ है।
आ गांव री बात कोई अेक गांव री कोयनी। आ तो गांव-गांव री बात है। अेक
जणौ कोई चाोखो काम करै तो लोग आंगळी उठावै। सांच है, पांचूं आंगळी
अेकसी कोनी हुवै। जणै इ तो स्वारथी मतलबी लोगां री पांचूं आंगळ्यां घी मै
दीसै। रामू अ’र उण समान कितराई मिनख चोपाल में मूंडो बांध बैठ्या रैया।
हताई चालती रैयी।