बलात्कार ? फिर भेद क्यों ?

sohanpal singh
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भला हो अंग्रेजों का जो हमे कुछ चीजे विरासत में देकर गए हैं एक राष्ट्रपति भवन एक संसद भवन , साउथ ब्लाक और नार्थ ब्लाक के साथ 1860 से 1947 तक तक बनाये गए बहुत से कानून जिसमे पुलिस कानून के साथ साथ क्रिमिनल प्रोसीजर । आजादी के बाद हमने एक अदद संविधान बनाया जिसको बनाने में बाबा साहेब भीमराव रामजी आंबेडकर ने एक बहुत बड़ा काम किया और बदले में अपनी जमात के लिए 10 वर्षो के आरक्षण का प्राविधान का परबंध भी करवा लिया ? लेकिन उन्होंने जब संविधान की रचना की तो कर दी लोकतंत्र का संचालन कैसे होगा इसके लिए लोक सभा और राज्य सभा के गठन और राज्यों के लिए विधान सभा और विधान परिषद के गठन का नियम चुनाव पद्धति चुनाव आयोग और निर्वाचन के आधे अधूरे नियम भी बनाये ? जिसमे एक बार जनप्रतिनिधि बनने के बाद अगर वह व्यक्ति नाकारा हो जाय तो उसे कैसे काबू में किया जाय इस बात का कोई प्राविधान नहीं है ? जबकि संविधान में अब तक 100 से अधिक संशोधन किये जा चुके है ?

यही कारण है अंग्रेजों के बनाये CrPC की बदौलत एक व्यक्ति बलात्कार का आरोपी बनाकर जेल मे निरुद्ध किया जा सकता है जिसकी जदूसरी ओर लोकतंत्र के साथ बलात्कार का आरोपी व्यक्ति की जाँच भी कोई नहीं कर सकता क्योंकि हमारे भीम जी ने इस ओर ध्यान ही नहीं दिया ? हम बात कर रहे है अपने लोकप्रिय धर्म गुरु बापू आशाराम की जो एक बालिका के बलात्कार के आरोप में 4 वर्षों से राजस्थान की एक जेल में निरुद्ध है जमानत भी नहीं हुई है उनकी ? दूसरी ओर लोकतंत्र के साथ बलात्कार के आरोपी व्यक्ति दिन दुनी रात चौगनी तरक्की करते हुए सेवक से परधान सेवक तक बन जाते हैं ? नोट बंदी से सम्बंधित मामला उच्चतम न्यायालय में लंबित है लेकिन 50 दिन लंबी प्रक्रिया पूरी हो चुकी है ? इस लिए अधिक कुछ न कहते हुए हम केवल इतना ही कहते है कि नोट बंदी की घोषणा के कारण 150 से अधिक लोग असमय ही काल के गाल में चले गये है और सरकार की तरफ से क्षतिपूर्ति तो अलग सहानुभूति का एक शब्द भी नहीं आया उन गरीबो की आत्मा की शांति के लिए ? इस लिए इस बात को कहने में कोई संकोच नहीं है कि नोट बंदी का पूरा कार्यक्रम ही संविधान की आत्मा के साथ बलात्कार जैसा ही है परंतु संविधान में ऐसे कुकृत्यों के विरुद्ध कोई प्राविधान ही नहीं है कि कुकृत्य करने वालों को जेल में निरुद्ध किया जा सके?

रस. पी. सिंह , मेरठ ।

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