
मीडिया की कार्यशैली को देखकर मुझे लगा कि जब मेरे साथी मीडिया कर्मियों का एक पुराने पत्रकार के साथ यही व्यवहार है तो उनका आम जनता और पीड़ितों के साथ कैसा व्यवहार होता होगा। इसे देखकर मैने अपने मित्र स्वच्छ छवि के तेज तर्रार मथुरा बार एशोसियेशन के तत्कालीन अध्यक्ष एवं वर्तमान प्रत्याशी विजयपाल सिंह तौमर एड. जिन्होंने जवाहरबाग को भी कब्जाईयों के कब्जे से जनहित याचिका के माध्यम से मुक्त कराया था को पूरी घटना से अवगत कराया तो उन्होंने एसएसपी मथुरा से मोबाईल पर सम्पर्क स्थापित किया लेकिन वार्ता न होने पर अगले दिन वह मेरे साथ एसएसपी कार्यालय पहुंचे जहां एसएसपी की अनुपस्थिति में एसपी क्राइम राजेश कुमार सौनकर से मुलाकात कर पुलिस की कार्यप्रणाली से अवगत कराया। जिसके बाद बाइक चोरी की घटना पांच दिन बाद दर्ज हो सकी। लेकिन एफआईआर दर्ज होने के बावजूद भी बाइक चोरी की खबर की एक लाइन भी प्रकाशित नहीं की गई।
मथुरा की मीडिया मथुरा कोतवाल पर मैहरबान है या फिर वाहन चोर गैंग पर यह तो वही जाने अथवा फिर मुझसे कोई व्यक्तिगत दुश्मनी है यह मेरी जानकारी से बाहर है। लेकिन मैं आम जनता पीड़ितों, शोषितों के साथ – साथ मीडिया कर्मियों के हर सुख-दुःख में अवश्य शामिल होता रहा हूं। इसके बावजूद भी मेरे साथ मीडिया के हुऐ इस व्यवहार ने – ‘‘बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपैया’’ की कहावत को सटीक चरितार्थ किया। एक तरफ प्रैस वार्ता के नाम पर समौसे, पकौड़े, लिफाफे, पटका, शराब की बोतल, कपड़े, तस्वीर की चाहत में पत्रकारों की भीड़ नजर आती है। बल्कि इसके बदले रस्सी को सांप बनाने में भी अपनी शान समझतें हैं। लेकिन मीडिया खबर अथवा सहयोग के बदले किसी अपने पीड़ित पीड़ित भाई से भी सुविधाशुल्क या फिर किसी अन्य सुविधा की उम्मीद करे तो उससे ज्यादा और शर्मनाक क्या हो सकता है।
मीडिया के इस व्यवहार को देखकर मुझे देश के रक्षामंत्री एवं पूर्वजनरल वी.के. सिंह के वो शब्द याद आ रहे हैं कि ‘‘पत्रकारों की स्थिति वैश्याओं से भी बदतरहै’’ जो आज के माहौल में सटीक साबित हो रहे हैं। जो दौलत और दलाली की चाहत में लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ के साथ – साथ अपनों का गला घोटनें में भी पीछे नहीं है। जिसने मानवता के नाम पर पुलिस और नेताओं को भी काफी पीछे छोड़ दिया है। हालांकि आज भी कुछ पत्रकारों की ईमानदारी पर कोई प्रश्न चिन्ह् नहीं लगाया जा सकता है। लेकिन वह आज के माहौल में पुलिस-प्रशासन-नेताओं-माफियाओं से दूरी बनाकर जैसे तैसे अपना जीवन यापन करने पर मजबूर हैं। लेकिन वह ‘असली’ पत्रकारों की श्रेणी से बाहर होते दिखाई दे रहे हैं। यही कारण है कि ‘‘जो सबसे बड़ा दलाल है, वही पत्रकारिता में मालामाल है’’ की पक्तियां को सटीक चरितार्थ है। और उसके लिये ‘‘दौलत है ईमान मेरा’’ सर्वोपरि है।
मफतलाल अग्रवाल
(लेखक वरिष्ट पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता हैं।)