हारे को हरी नाम !

sohanpal singh
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अब मोदीजी और अमित शाह को यूपी और उत्तराखंड जितने की कितनी भी बधाई दो सब कम हो जाती है जब हारी हुई पार्टियों के नेता यह आरोप लगाते है कि वोटिंग मशीन में गड़बड़ी की गई है हारने वाले को शंका हैरान करने वाली होती है ? लेकिन लोकतंत्र का एक तकाजा यह भी है क़ि शंका का समाधान भी जरुरी है , उसका तरीका क्या हो यह तो चुनाव आयोग और सरकार को करना ही होगा अन्यथा जिस प्रकार से तमाम पाबंदियों के होते हुए भी बाहुबल और धनबल को आज तक कोई भी चुनाव आयोग पूर्ण रूप से नहीं रोक पाया है, इस कारण से उसकी प्रतिष्ठा भी दांव पर है, इसलिए चुनाव आयोग कितना भी निष्पक्ष होकर कार्य करे पार्टियों द्वारा धन बल और वोटिंग मशीन के साथ छेड़ छाड़ होने के आरोप को नाकारा नहीं जा सकता ? इस लिए यह उचित ही होगा की जिस प्रकार से बीजेपी के सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने सुझाव दिया था कि जिस प्रकार से एटीएम मशीन से ट्रांसजेक्सन करने पर पर्ची निकलती है उसी प्रकार वोटिंग मशीन से पर्ची निकले जिसमे वोटिंग का विवरण हो और उसको सुरक्षित रखा जाय और कोई भी गड़बड़ी होने पर उसकी गिनती की जाय !

अन्यथा चुनाव आयोग की विश्वनीयता पर एक बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह तो लग ही जाता है क्योंकि दनिया भर के बहुत से विकसित देशो में अभी भी पेपर बैलट से ही वोटिंग होती है ! हम केवल पेपर बचाने के नाम पर अपने लोकतंत्र को इस प्रकार से कलंकित नही कर सकते , क्योंकि EVM द्वारा वोटिंग माध्यम विवादों से भरा है ? 2009 में यही आरोप बीजेपी के एक प्रमुख नेता मुख़्तार अब्बास नक़वी ने भी लगाया जब बीजेपी की सीटें 2004 के चुनाव से भी काम आयीं थी । और इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता की वोटिंग मशीन बनाने में प्राइवेट कंपनियों का भी सहयोग लिया जाता है और प्राइवेट कंपनियों को साधना कोई बड़ी बात नहीं है ?इस लिए वर्तमान आरोपों की जाँच अवश्य करवानी चाहिए , क्योंकि न्यायधीश सच्चर जैसे व्यक्ति ने भी शंका जाहिर करते हुए जांच की मांग की है ?

एस.पी.सिंह, मेरठ

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