वसुन्धरा सरकार जाए या न जाए, राजस्थान की जनता तो सजा भुगत चुकी

डॉ. मोहनलाल गुप्ता
डॉ. मोहनलाल गुप्ता
राजस्थान का मीडिया भीतर ही भीतर एक बार फिर सुलग रहा है, चिन्गारी भी पुरानी है और आग भी वही। अब गई, अब गई, अब की बार तो बिल्कुल ही गई। इन चुनावों के बाद, इस बजट के बाद, संसद के इस सत्र के बाद………… वसुन्धरा की सरकार का जाना तय है, इस तरह के चर्चे सुनते-सुनाते साढ़े तीन साल निकल गये।
भगोड़े ललित मोदी के लिये वसुन्धरा राजे द्वारा विदेशी अदालत में गवाही देने का मामला हुआ, धौलपुर पैलेस होटल के शेयरों की ऊंचे भावों में बिक्री का मामला खुला, धौलपुर में जमीन का प्रकरण उछला, खान घोटाले में अशोक सिंघवी को अंदर किया गया, लालचंद असवाल की गिरफ्तारी हुई, एनआरएचएम घोटाले में नीरज के पवन को भीतर धरा गया……. और भी बहुत कुछ हुआ। जब भी सरकार के अन्दरखाने कुछ हुआ या कभी चौराहे पर भी आया, राजस्थान का मीडिया हुक्के की तरह गुड़गुड़ करता रहा और वसुन्धरा सरकार ताल ठोककर हर फिक्र को धुएं में उड़ाती रही।
आज वसुन्धरा सरकार का गठन हुए साढ़े तीन साल का समय बीत चुका है। अब यदि वसुन्धरा सरकार चली भी जाती है तो का बरखा जब कृषि सुखाने! क्या साढ़े तीन साल से तकलीफें भोग रही जनता के घावों पर मरहम लग जायेगा ? और यदि यदि वसुन्धरा सरकार एक-डेढ़ साल और चल भी गई तो क्या राजस्थान की जनता पर आसमान टूट पड़ेगा ? दोनों ही काम नहीं होंगे लेकिन दोनों ही स्थितियों में वसुन्धरा राजे के हाथों में लड्डू रहेंगे।
वसुन्धरा राजे के सामने बीजेपी का केन्द्रीय नेतृत्व लाचार दिखाई देता है। नुक्सान इतना हो चुका है कि यदि वसुन्धरा सरकार को हटाया जाता है तो भी अगले चुनावों में बीजेपी का रास्ता साफ होता दिखाई नहीं देता। ऐसी स्थिति में वसुन्धरा राजे हार का ठीकरा आसानी से केन्द्रीय नेतृत्व के सिर फोड़ेंगी। और यदि केन्द्रीय नेतृत्व, वसुन्धरा की सरकार को यूं ही चलते रहने देता है तो भी वसुन्धरा राजे के हाथ में लड्डू, उनकी सरकार के तो पांच साल पूरे हो ही गए!
यह एक अजीब सी लोकतांत्रिक सरकार है, जिसका जनता के साथ सीधा संवाद नहीं है। मुख्यमंत्री की जगह महारानी वाली स्टाइल है। जनता की भलाई के लिये किये जाने वाले दावे तो बड़े-बड़े हैं किंतु सरकारी खजाने में ही पैसा-टका मुश्किल से जुड़ रहा है, जनता की भलाई हो भी तो कैसे! सड़कों के खड्डे, आनंदपाल जैसे माफिया, अस्पतालों में मरीजों की भीड़, सब-कुछ सरकार की पकड़ और नियंत्रण से बाहर है।
सरकारी विभागों पर से सरकार का विश्वास उठ गया है। बहुत सा काम पीपीपी मोड पर या ठेके पर दिया जा चुका है। सरकार के मंत्री झूठ बोलते हैं कि वन्यजीवों को निजी एजेंसियों के हाथों में नहीं सौंपा जायेगा किंतु भीतरखाने वे पूरी तैयारी करते हैं कि राज्य के वन्यजीवों को विदेशी कम्पनियों के हाथों सौंप दिया जाये! मीडिया में बात फूटने पर सारी योजना धरी की धरी रह जाती है।
सरकारी अफसर मुख्यमंत्री के सामने तो धरती पर बिछे हुए दिखाई देते हैं किंतु जनता को आंखें दिखाते हैं। आज आम आदमी सरकारी कार्यालयों में सीधा जाने की बजाय बीजेपी के किसी नेता से सिफारिश करवाना उचित समझता है किंतु उनकी भी सुनता कौन है! विपक्ष के साथ तो सरकार ने मानो छत्तीस का आंकड़ा ही बना रखा है, बीजेपी के अपने विधायक भी इस सरकार से असंतुष्ट हैं।
सरकार ने अपना जनसम्पर्क भी ऐसे लोगों के हाथों में दे दिया है जिनका मीडिया से संतुलित संवाद ही नहीं है। छोटे और बड़े-बड़े समाचार पत्र भी विज्ञापनों के लिये तरस रहे हैं। जिनकी सरकार तक सीधी पहुंच है, उन्हें विज्ञापनों की मलाई मिलती है। यहां तक कि राज्य के एक बड़े अखबार को तो मामला कोर्ट में ले जाना पड़ा।
राजस्थान का मीडिया लोकसभा के इस सत्र के अवसान की बाट जोह रहा है, जिसके बाद केन्द्रीय मंत्रिमण्ड का विस्तार होना तय माना जा रहा है और यह भी कि इस बार मुख्यमंत्री अवश्य बदला जायेगा। वसुन्धरा को केन्द्रीय मंत्रिमण्डल में लिया जाना भी तय माना जा रहा है। क्या वसुन्धरा सरकार इस बार भी फिक्र को धुएं में उड़ा पायेगी!
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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