एन आर सी सी और रूटग के बीच समन्वयात्मक अनुसंधान की संभावनाएं तलाशी

एनआरसीसीमेंआईआईटीगु्रप के साथइन्ट्रेक्टिवमीट का आयोजन
bikaner samacharबीकानेर,26अगस्त 2017। भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र में आज दिल्ली के आईआईटीग्रुप के साथ इन्ट्रेक्टिवमीट का आयोजन किया गया। आई आई टी के रूरल टैक्नोलाॅजी एक्शनग्रुप (रूटग) के विशेषज्ञ, आई सीए आर के वैज्ञानिकों/तकनीकी अधिकारियों के अलावा बीकानेर इंजीनियरिंग काॅलेज के प्राध्यापकों/पदाधिकारियों एवं छात्रों ने भी इसमे ंशिरकत की। बैठक के पूर्व आई आई टी के इस गु्रप ने संस्थान द्वारा विकसित किए जा रहे ऊँट आधारित यंत्रों का निरीक्षण किया एवं उन पर अपने बहुमूल्य सुझाव भी दिए।
दिल्ली के इस गु्रप ने उष्ट्र बाड़ों,डेयरी, चार उत्पादन इकाई का भी भ्रमण किया तथा आहार प्रौद्योगिकी, ऊँटनी के दूध से निर्मित दुग्ध उत्पादों के निर्माण आदि की जानकारी दी गई।ग्रुप ने केन्द्र में स्थित उष्ट्र चालित विद्युत उत्पादन यंत्र पर बीकानेर इंजीनियरिंग काॅलेज के साथ समन्वयात्मक अनुसंधान कार्य का अवलोकन किया। उन्होंने केन्द्र की इस अनुसंधान पहल में खास रूझान दिखाते हुए प्रसन्नता व्यक्त की तथा बेहतर क्रियान्वयन हेतु महत्वपूर्ण सुझाव भी दिए।गु्रप को केन्द्र द्वारा ऊँटनी के दूध से निर्मित उत्पादों कुल्फी आदि का रसास्वादन भी करवाया गया।
इस अवसर पर प्रो.आर.आर.गौड़, अध्यक्ष, रूटग ने कहा कि रूटग गु्रप का उद्देष्य ग्रामीणों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए तकनीकी विकसित करना है ताकि ग्रामीण अंचलों में उनकी उपयोगिता का लाभ मिल सके। वैज्ञानिक/डिजाइनर नवाचार प्रौद्योगिकी की सार्थक उपयोगिता हेतु ग्रामीणों के लिए उसकी उपयोगिता को ध्यान में रखकर नए यंत्रों काडिजाइन विकसित करें। प्रो.गौड़ ने कृषि में आधुनिक यंत्रों के बढ़ते प्रयोग पर कहा कि प्रकृति एवं पशुओं के साथ बेहतर सामंजस्य से तैयार टैक्नोलाॅजी सर्वाेत्कृष्ट एवंटिकाऊ होगी। कोई भी समस्या फील्ड से उठनी चाहिए, समझना चाहिए कि वास्तविक समस्या क्या है ? प्रो.गोड़ ने यह अपेक्षा जताई कि एनआरसीसी तथा रूटग गु्रप के तालमेल से ऊँट पालकों की समस्याओं का बेहतर समाधान ढूंढने में सहायता मिलेगी। साथ ही भविष्य में ऊँट श्रम पर आधारित ऐसे यंत्र विकसित किए जा सकेंगे, जिसके प्रयोग से ऊँट पालक अपनी आय में वृद्धि कर सकें तथा उनकी समस्याओं का निराकरण हो सके।
इस अवसर पर केन्द्र के निदेशक डाॅ.एन.वी.पाटिल ने कहा कि ऊँटों की उपयोगिता सीमित होने के पीछे महत्वपूर्ण कारण,उनकी कार्यक्षमता का सही उपयोग नहीं लिया जाना भी है जिससे ऊँटों की संख्या कम हुई। इस प्रजाति की कार्यक्षमता के बेहतर उपयोग हेतु विद्युत उत्पादन तथा फूडप्रोसेसिंग जैसे कार्याें हेतु इसका उपयोग किया जाना चाहिए।इस हेतु केन्द्र ने बीकानेर इंजीनियरिंग काॅलेज के छात्रों के अनुसंधान को बढ़ावा देने हेतु पहल की तथा रूटगगु्रप ने इसका अवलोकन करते हुए इसे उपयोगी बताया और उचित सुझाव दिए है।
डाॅ. पाटिल ने कहा कि वैष्विक स्तर पर इस प्रजाति पर अनुसंधान की ललक बढ़ी है ऐसे में भारत मंे भी ऊँटों पर अनुसंधान की नूतन संभावनाओं को तलाशा जाना चाहिए। डाॅ.पाटिल ने समन्वयात्मक अनुसंधान की बात रखते हुए रूटगगु्रप के समक्ष अपनी मंशा जताते हुए कहा कि ऊँटनी के दूध में विद्यमान औषधीय गुणधर्माें के कारण, केन्द्र ऊँट को एक दूधारू पशु के रूप् में स्थापित करने की मुहिम पिछले एक दशक से चला रहा है तथा फील्ड स्तर पर इस दूध के संग्रहण, प्रसंस्करण, परिवहन एवं विपणन आदि फील्ड से जुड़े व्यावहारिक पहलुओं एवं समस्याओं को ध्यान में रखकर ऐसेगैजेट/यंत्र तैयार करने की आवश्यकता है जो कारगर हो तथा जिससे जरूरतमंद ऊँट पालक, दुग्ध व्यवसाय को अपनाने हेतु प्रोत्साहित होकर आगे आए तथा उनकी आमदनी बढ़ाई जा सके।
इस अवसर पर प्रो.एस.के.साह, विभागाध्यक्ष, मैकेनिकल इंजीनियरिंग, आई आई टी,नई दिल्ली ने कृषि आदि कार्याें में उनके द्वारा विकसित पश ुआधारित प्रौद्योगिकी का प्रस्तुतिकरण किया। बैठक में अनुराग पुरोहित, केन्द्रीय ऊन विकास बोर्ड, जोधपुर प्रो.ओ.पी. जाखड,़बीकानेर इंजी.काॅलेज तथा भेड़ अनुसंधान केन्द्र,बीकानेर के डाॅ.ए.के.पटेल ने भी अपने विचार रखे।
– मोहन थानवी

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