अजमेर संसदीय क्षेत्र के सांसद व राज्य किसान आयोग के अध्यक्ष प्रो. सांवरलाल जाट के निधन के कारण रिक्त हुई अजमेर संसदीय सीट पर स्वाभाविक रूप से उनके पुत्र रामस्वरूप लांबा को उपचुनाव में टिकट दिए जाने की संभावना जताई जा रही है, मगर सवाल ये उठता है कि क्या लांबा वैसा ही परफोर्म कर पाएंगे, जैसा प्रो. जाट ने किया था?
इसमें कोई दोराय नहीं कि लोकदल से भाजपा में आए प्रो. जाट ने अजमेर जिले के परंपरागत रूप से कांग्रेस से जुड़े जाटों को भाजपा की ओर आकर्षित किया और अजमेर संसदीय क्षेत्र से जीतने के बाद वे जिले के जाटों के सर्वमान्य नेता भी माने जाने लगे, मगर उनके जीते जी लांबा राजनीति में न तो ठीक से सक्रिय हुए और न ही उनकी यथोचित स्थापना ही हो पाई। अगर पिछले विधानसभा चुनाव में उन्हें प्रो. जाट का आग्रह मान कर नसीराबाद से टिकट दिया जाता तो कदाचित वे मंझ जाते, मगर ऐसा हो न सका। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने परिवारवाद पर अंकुश की आड़ में उन्हें टिकट से वंचित कर दिया। आज जब कि प्रो. जाट इस दुनिया में नहीं हैं तो हालांकि लांबा उनके स्वाभाविक विकल्प माने जा रहे हैं, मगर प्रो. जाट के व्यक्तित्व के मुकाबले वे कहीं भी नहीं ठहरते। बेशक उन्हें सहानुभूति वोट तो मिल सकता है, मगर प्रो. जाट के राजनीतिक गुर उन्होंने आत्मसात कर लिए हों, इसको लेकर तनिक संदेह है। प्रो. जाट के रहते उनके कद के आगे कोई भी क्षेत्रीय जाट क्षत्रप उभर नहीं पा रहा था, मगर वे अब वे उनकी गैर मौजूदगी में उभरने की कोशिश कर सकते हैं। हालांकि प्रो. जाट ने जब लोकसभा का चुनाव जीता तो उन्होंने कांग्रेस के दिग्गज नेता सचिन पायलट को हराया तो वे भी दिग्गज कहलाने लगे, जिसकी बदोलत केन्द्र में मंत्री भी बने, मगर यह सच्चाई किसी से छिपी नहीं है कि उनकी जीत में मोदी लहर की अहम भूमिका थी। यह बात ठीक है कि अगर लांबा को टिकट मिलता है तो केन्द्र के साथ पूरी राज्य सरकार उनके साथ खड़ी होगी, मगर उन्हें मोदी लहर जैसा सहारा नहीं मिलेगा, जैसा कि प्रो. जाट को मिला था। इसके अतिरिक्त सबसे ज्यादा खतरा केन्द्र व राज्य सरकार के विपरीत एंटी इंकम्बेंसी फैक्टर का है। आम चुनाव की बात दीगर है। उसमें दोनों पार्टियों की ताकत सभी सीटों में बंट जाती है। उपचुनाव में सारा फोकस एक ही सीट पर होता है। प्रतिष्ठा की खातिर जितनी ताकत भाजपा लगाने वाली है, उतनी ही कांग्रेस भी झोंक देगी, क्योंकि उसे आगामी विधानसभा चुनाव में जीत की जाजम बिछानी है।
वैसे भाजपा के अंदरखाने की चर्चा है कि लांबा पर दाव खेलने से पहले हाईकमान गंभीरता से विचार करेगा। भाजपा किसी भी सूरत में यह चुनाव जीतना चाहती है, इस कारण किसी भी प्रकार की रिस्क नहीं लेना चाहती। फिलहाल फीडबैक लिया जा रहा है कि लांबा को केवल जाट मतदाताओं का ही सहानुभूति वोट मिलेगा, या अन्य समाजों का भी। इसके अतिरिक्त कुल मिला कर उनका परफोरमेंस कैसा रहेगा, इस पर भी गौर किया जा रहा है। कांग्रेस के पत्ते अभी खुल नहीं रहे, ऐसे में यह तय करना मुश्किल है कि लांबा का मुकाबला किससे होगा और कैसा रहेगा? समझा जाता है कि भाजपा आखीर तक यह ख्याल में रखेगी कि कांग्रेस किसको मैदान में उतारती है। उससे पहले लांबा के अतिरिक्त मौजूद विकल्पों पर भी चर्चा की जा रही है। भाजपा की सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि एक तो वह किसी जाट को ही टिकट देने को मजबूर है, क्योंकि किसी और को टिकट देकर वह जाटों की नाराजगी नहीं मोल ले सकती। दूसरा ये कि प्रो. जाट परिवार से इतर किसी और जाट नेता पर दाव तभी खेला जा पाएगा, जबकि प्रो. जाट के परिवार को राजी कर लिया जाए, जो कि कठिन है। कुल मिला कर भाजपा के पास सीमित विकल्प हैं, जबकि कांग्रेस कोई भी प्रयोग करने को स्वतंत्र है।
-तेजवानी गिरधर
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Ashok pooniya