ये मुझसे कौन बावस्ता रहा था ?
कि जिस से ज़ख़्मे दिल ताज़ा रहा था.
मुखौटा जो मुझे अब कह रहा है,
मैं उसका मुद्दतों चेहरा रहा था.
मज़ारों पे जो अब जलता है दीया,
वो मुझमें देर तक जलता रहा था.
यही वो शोर है जो कल तलक तो,
मेरी ख़ामोशियाँ सुनता रहा था.
नहीं पहचानता है जिस्म उसका,
मैं जिसका उम्र भर साया रहा था.
जो दरिया ख़ुद को अब तक कह रहा है,
मैं उसमें उम्र भर प्यासा रहा था.
सुरेन्द्र चतुर्वेदी
बावस्ता =जुड़ा हुआ