विवेकानन्द केन्द्र कन्याकुमारी के संस्थापक माननीय एकनाथजी के जीवन चरित्र का हुआ जीवन्त प्रदर्शन
विवेकानन्द मॉडल स्कूल माकड़वाली एवं ब्लू केसर पब्लिक स्कूल के विद्यार्थियों ने देखा विशेष शो
विवेकानन्द शिला स्मारक के निर्माता तथा तदन्तर विवेकानन्द केन्द्र के संस्थापक एकनाथजी का जीवन हमारे लिए प्रेरणास्पद है। बाल्यकाल से ही जिन्होंने कठोर श्रम किया तथा एक गरीब परिवार में रहते हुए अपने जीवन को राष्ट्रसेवा के लिए तैयार किया। उन्होंने अपने जीवन के उत्तर्राद्ध में जहाँ एक साधारण व्यक्ति अपने जीवन की संध्या का इंतजार करता है उस समय शिला स्मारक निर्माण जैसा कष्टसाध्य कार्य जिस युक्तियुक्त कुशलता, कर्तव्यनिष्ठा, त्याग एवं कठिन श्रम से किया वह हमारे लिए प्रेरणादायी है। इसके बाद भी उनका यह कहना कि मेरा जीवन पत्थर के स्मारक के निर्माण मात्र के लिए नहीं बना है बल्कि मुझे जो जीवन्त स्मारक चाहिए जो भारत में घर घर जाकर स्वामी विवेकानन्द का संदेश पहुंचा सकें और इस उद्देश्य के लिए उन्होंने विवेकानन्द केन्द्र की स्थापना की। उक्त विचार विवेकानन्द केन्द्र की जीवनव्रती कार्यकर्ता एवं प्रांत संगठक प्रांजलि येरिकर ने विवेकानंद केंद्र कन्याकुमारी की अजमेर शाखा द्वारा आयोजित एकनाथजी – एक जीवन एक ध्येय फिल्म के प्रदर्शन के अवसर पर मृदंग सिनेमा में व्यक्त किए।
इससे पूर्व फिल्म के बारे में बताते हुए विवेकानन्द केन्द्र राजस्थान प्रान्त के प्रशिक्षण प्रमुख डॉ. स्वतन्त्र शर्मा ने कहा जब स्वामी विवेकानंद ने जब 25, 26 एवं 27 दिसंबर 1892 को कन्याकुमारी की प्रसिद्ध शिला पर ध्यान किया था और उसके उपरांत 11 सितंबर 1893 को संपूर्ण विश्व में भारत की प्राचीन संस्कृति और सभ्यता के विषय में विश्व के दृष्टिकोण को बदल दिया था। तब स्वामी विवेकनंद के शताब्दी वर्ष में उस शिला पर भव्य स्मारक करने का निर्णय तमिलनाडु की स्थानीय समिति ने लिया। तत्कालीन राजनीतिक कारणों से स्मारक निर्माण में उत्पन्न बाधाओं के निराकरण के लिए स्थानीय समिति राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री गुरु जी से मिली और श्रीगुरु जी द्वारा माननीय एकनाथ जी रानडे को शिला पर स्मारक स्थापित करने का कार्य दिया गया। जहां छोटी-छोटी परियोजनाओं के लिए भी वर्षों लग जाते हैं वहीं इतने भव्य स्मारक का निर्माण को मूर्त रुप केवल 6 वर्ष की अवधि में देकर एकनाथ जी ने यह सिद्ध कर दिया कि किसी भी कार्य के लिए केवल दो चीजों की आवश्यकता होती है एक दृढ़ इच्छा शक्ति और दूसरा कार्य करने के लिए तत्परता। आज यह स्मारक प्रत्येक भारतवासी के लिए एक प्रेरक स्मारक है जहाँ प्रतिदिन हजारों की संख्या में लोग इसे देखने पहुंचते हैं। एकनाथजी केवल यही नहीं रुके। उनका मानना था कि केवल पत्थर का स्मारक बनाने के लिए उनका चयन नहीं हुआ है बल्कि ऐसा जीवन्त स्मारक बनाना जिससे स्वामी जी के विचारों को जन जन तक पहुंचाया जा सके। इस निमित्त उन्होंने इस कार्य के निर्माण के 2 वर्ष बाद ही 1972 में विवेकानंद केंद्र की स्थापना की।
नगर प्रमुख रविन्द्र जैन ने बताया कि इस फिल्म के प्रदर्शन में विवेकानन्द मॉडल स्कूल की प्राचार्या वर्तिका शर्मा, ब्लू केसर स्कूल के निदेशक नरेन्द्र सिंह रावत तथा विवेकानन्द केन्द्र के कार्यकर्ता भी उपस्थित थे।
यह था फिल्म में
एकनाथ जी के बचपन की घटनाएं जिसके कारण उन्हें अपने परिवार में एक अभिशाप माना गया और अपने माता-पिता के प्राणों के लिए एक संकट बताया गया उन्होंने अपने बड़े भाई और भाभी के घर पर रह कर अपनी शिक्षा-दीक्षा ग्रहण की। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्कार पाकर एक संगठक के रुप में पूरे देश के युवाओं के एकत्रीकरण के लिए वे प्रचारक बन कर निकल पड़े। अपने जीवन के उत्तरार्द्ध में जब विवेकानन्द शिला स्मारक का दायित्व उन्हें सौंपा गया तब इसके निर्माण में उत्पन्न सामाजिक बाधाओं और राजनीतिक चुनौतियां का सामना बड़ी कुशलता के साथ उन्होंने किया और धुर विरोधी कहे जाने वाले दलों को भी इस कार्य के लिए अत्यंत कुशलता और चातुर्य से तैयार किया। युवाओं को इस फिल्म से प्रेरणा मिलती है कि किस प्रकार अपने जीवन की कठिन से कठिन चुनौतियों का सामना विचलित हुए बिना बुद्धि के चातुर्य और मन की स्थिरता से किया जा सकता है।
(रविन्द्र जैन)
नगर प्रमुख
संपर्क 9414618062