अष्टानिका पर्व के सातवें दिन की पूजन व विधान बड़ी धूमधाम व भक्ति भाव से की गई

अजमेर, 8 मार्च 2020
श्री पल्लीवाल दिगंबर जैन मंदिर पाल बीचला।
इंदौर से पधारी ब्रह्मचारिणी बहन संगीता दीदी के सानिध्य में आज अष्टानिका पर्व के सातवें दिन की पूजन व विधान बड़ी धूमधाम व भक्ति भाव से की गई। आज पंच परमेष्ठी भगवान का विधान किया गया जिसमें पांचों परमेष्ठी भगवान का गुणानुवाद 512 अर्घों के माध्यम से किया गया।
यह जानकारी देते हुए सरिता जैन ने बताया कि ब्रह्मचारिणी बहन संगीता दीदी ने आज आध्यात्म की महिमा बताते हुए कहा कि प्रभु की भक्ति व पूजन व्यक्ति को अपने भीतर झांकने और आत्म विश्लेषण कर अपने विकृत परिणामों को सुधारने को प्रेरित करती है। जैन धर्म एक भावना प्रधान धर्म है इसमें बाहरी क्रियाओं के साथ ही आंतरिक भावों की विशुद्धि को बहुत महत्व दिया जाता है। धार्मिक क्रियाऐं करने वाले व्यक्ति 3 प्रकार के बताए। पहले व्यक्ति पाषाण के समान है, जो धार्मिक क्रियाएं तो करते हैं लेकिन जिस प्रकार पाषाण पर पानी नहीं ठहर सकता उसी प्रकार वे धर्म को आत्मसात नहीं करते, दूसरे प्रकार के मनुष्य तह किए हुए वस्त्र के समान हैं, यदि उस वस्त्र पर जल डाला जाए तो कुछ हद तक वह गीला हो जाता है ,उसी प्रकार दूसरी तरह के व्यक्ति बहुत कम मात्रा में धर्म को आत्मसात कर पाते हैं, तीसरे प्रकार के व्यक्ति ,जो शक्कर के समान है जिस तरह शक्कर पानी में पूर्ण रुप से घुल जाती है ,उसी तरह ये व्यक्ति धर्म को पूर्णतः आत्मसात कर लेते हैं। हमारी धार्मिक क्रियाओं का उद्देश्य अपने जीवन को पांचो पापों,कषायों व राग द्वेष से बचाना है। राग द्वेष करने वाला व्यक्ति निरंतर अपना ही अहित करता रहता है ।अनेक पुण्य कर्मों के संचय से प्राप्त मनुष्य पर्याय को आत्म कल्याण में लगाकर मोक्ष मार्ग की ओर बढ़ना चाहिए।
सायंकालीन आरती श्रीमती विमला जी ,राजीव जी की ओर से लाई गई।काजल जैन द्वारा मंगलाचरण प्रस्तुत किया गया । ‘बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय’ नृत्य नाटिका की प्रस्तुति बहुत ही रोचक थी।

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