किशनगढ।* कोरोना वायरस से उत्पन्न संकट की इस घडी में *’राम’* नाम की लूट होनी चाहिये….उसी से मानव कल्याण सम्भव है। *’राम’* का नाम अपने आप में *’रक्षा कवच’* है।यह सब जान लेने के बाऊजूद भी न जाने क्यूं❓मेरे शहर के लोग इस संकट की घडी में वह सब लूट लेना चाहते हैं,जिसके चलते वे खुद लुटने में आ रहे हैं। लुटने वालों की आदत ग ई नहीं और लूट लेने वाले बाज नहीं आ रहे हैं।मेरा शहर धनाढ्यों की नगरी के नाम से जाना जाता है,जहां लुटना-लूट लेना आम बात है।बस और बस अपना *वजूद* बना रहना चाहिये।लेकिन सवाल❓इस बात का है कि लोग संकट की इस घडी में भी *’साम-दाम-दण्ड’* भेद की नीति अपनाते हुए अपना वजूद कायम करने से बाज नहीं आ रहे…जिसके चलते शहर शर्मसार हो रहा है।
*हम सभी लोग देख रहे हैं कि सेवकों के दिलों में ‘सेवा’का जज्बा इस कदर जागा कि कमबख्त ‘सेवा’के नाम पर भी राजनीति होने लगी।इस संकट की घडी में सभी लोग अपने वर्चस्व की चादर टांगे घूमते नजर आ रहे हैं।हर कोई ‘भूखे’ और ‘जरुरत मंदों’ का ‘पहरेदार’ बना खडा है।ना जाने सारी भुखमरी मेरे शहर में पनपी पडी थी क्या❓जिसे ‘सेवक’ अब खोज खोजकर सामने ला रहे हैं।चलो मान लेते हैं ..’सेवकों’ का काम मौके-बेमौके ‘अपनी तूती’ बजा लेने का होता है..लेकिन शहरवासी क्यूं❓पागल बने जा रहे हैं…यह समझ नहीं पड रहा।बस और बस ‘सहायता’ के नाम पर ‘लूट’ मची है।इस ‘लूट’ के पीछे ‘परदे’ में छुपी बांतो को कोई समझना ही नहीं चाहता या अपनी समझ को ताक में धर कर ‘लालच’ में पडे हैं।*
*बरहाल मेरी कलम ‘भूख’ और ‘सहायता’ का कोई विश्लेषण नहीं करना चाहती,लेकिन इस बात से अगाह जरुर करना चाहूंगा कि ‘सहायता’ के नाम पर ‘बारे-के-न्यारे’ नहीं हो जाय।सम्भव है कोई अपने वर्चस्व का धनी बन बैठे तो तो अपनी पुडिया सेक ले।ऐसे में बताना चाहूंगा कि सरकार ने भी लोगों की भलाई के सारे दरवाजे खोल कर रख दिये हैं जो नाकाफी नहीं है।…फिर भी आप ‘सहायता’ के नाम पर चल रहे खेल के पर्दे के पीछे का सच जानना चाहते हैं तो मेरे लिखे ब्लॉग नियमित पढते रहे।*
सर्वेश्वर शर्मा*__
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