संसार का सिरमौर सिन्ध व महाराजा दाहरसेन- हंसराम उदासीन

अजमेर 15 जून। सिन्धुपति महाराजा द्ाहरसेन विकास व समारोह समिति द्वारा 1308वां बलिदान वर्ष अंर्तराष्ट्रीय महाराजा दाहरसेन ऑनलाइन परिचर्चा की गई महामण्डलेश्वर हंसराम उदासीन ने विचार प्रकट करते हुये कहा कि संसार का सिरमौर सिन्ध व महाराजा दाहरसेन के बगैर बात करना बेमानी होगी। तीन सुधारे देश को सन्त, सती व सूर। दुनिया में पहली बार जोहर महारानी लाडी ब्ाई ने किया। अपना अंश व वंश कभी नहीं जाता है और हमें सिन्ध मिलेगी। सिन्ध है तो हिन्द है और पाकिस्तान ने सिन्धियों को भुला दिया है जिससे सिन्ध व पाकिस्तान की यह दशा हुई है और आज भी दुनिया से सिन्धियों को सिन्ध से जोडा जाये जिससे सिन्ध को बसाया जाये। महाराज ने कहा कि लखावत ने महाराजा दाहरसेन स्मारक एक तीर्थ स्थान के रूप में बनाया है। निरंतर गतिविधियों से युवा पीढी का जुडाव हुआ है। ऐसी संगोष्ठियों का प्रतिमाह में किया जाना चाहिये जिससे अलग अलग विषयों में सिन्ध के इतिहास की जानकारी हो।
संगोष्ठी में वक्ता पूर्व सांसद ओंकार सिंह लखावत ने कहा कि सिन्ध भारत का अभिन्न अंग है और रहेगा। हम संकल्प लें कि जब तक सिन्ध मिलकर भारत का अभिन्न हिस्सा बनेगा। सिन्ध केवल जमीन का टुकडा नहीं है वह संस्कृति है। सिन्ध के बिना हिन्द की कल्पना नहीं कर सकते हैं । शिक्षा का केन्द्र सिन्ध, व्यापार का केन्द्र सिन्ध है। हमरी भक्ति व शक्ति का केन्द्र सिन्ध है। अखण्ड भारत की महान शक्ति हिंगलाज शक्ति पीठ है। बिना सिन्ध के हिन्द में जिन्दा कैसे रह सकते हैं। सिन्धु से ही हिन्दु की उत्पति हुई है। महाराजा दाहरसेन ने खलीफो से युद्ध लडा और उन्होने बडे हमलों का मुकाबला किया। उनकी वीरांगना पत्नि लाडी बाई व पुत्रियां सूर्यकुमारी व परमाल ने भी मुकाबला किया। उन्होने बप्पा रावल के बलिदान का जिक्र करते हुये सिन्ध से उनका जुडाव बताया।
अमेरीका के साहित्यकार सूफी लघारी ने कहा कि महाराजा दाहरसेन के बलिदान को देश दुनिया में याद किया जाता है और भारत सरकार को इतिहास में जोडकर पढाया जाये जिससे युवा पीढी को ऐसी गौरव गाथा की जानकारी हो। सिन्ध में आज भी बच्चों के नाम दाहर रखा जा रहा है। इतिहास को सही लिखने की आवश्यकता है जिससे सिन्ध के महापुरूषों व संतो के जीवन पढा जाये। उन्होने कहा कि हिन्दुस्तान के हर शहर में राजा दाहरसेन का स्मारक व मार्ग का नाम रखना चाहिये जिससे महान योद्धा का इतिहास लोगों तक पहुंच सके।
भारतीय सिन्धु सभा के राष्ट्रीय मंत्री महेन्द्र कुमार तीर्थाणी ने कहा कि 1997 में महाराजा दाहरसेन स्मारक का निर्माण हुआ था। समारोह समिति व सिन्धु सभा की ओर से अलग अलग गतिविधियों का आयोजन किया जाता रहा है जिसमें बलिदान दिवस, जयंती दिवस व अलग अलग महापुरूषों के प्रेरणादायी कार्यक्रम आयोजित किये जाते रहे हैं और सिन्धु सभा का ध्येय वाक्य है कि सिन्ध मिलकर अखण्ड भारत बनेगा और इसी परिकल्पना मंे आज की संगोष्ठी सार्थक प्रयास है और देश भर की ईकांईयों की ओर से ऐसे आयोजन किये जा रहे हैं। आगामी 2021 वर्ष स्मारक का रजत जयंती वर्ष है।
कार्यक्रम का संचालन करते हुये कवंल प्रकाश ने संगोष्ठी की विस्तृत रूपरेखा रखते हुये कहा कि आज इस लाॅकडाउन के कारण यह आॅनलाइन संगोष्ठी देश दुनिया में एक अपनी अलग पहचान छोडेगी तथा महाराजा दाहरसेन के जीवन की गौरव गाथा लोगो तक पहुंचाने तक एक मील का पत्थरर साहित होगी।
बलिदान दिवस 16 जून को स्मारक पर श्रृद्धासुमन अर्पित करे-
कार्यक्रम समन्वयक मोहन तुलस्यिाणी ने बताया कि कल मंगलवार 16 जून को 1308वें बलिदान दिवस के उपलक्ष में प्रातःकाल से ही सांय 7 बजे तक हिंगलाज माता पूजन व महाराजा दाहरसेन को श्रृद्धासुमन विभिन्न संस्थाओं व संगठनों द्वारा पुष्प् अर्पित किये जायेगें। उन्होने बताया कि दाहरसेन पर आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में अजमेर विकास प्राधिकरण, नगर निगम, पर्यटन विभाग सहित सिन्धु शोधपीठ, मदस विश्वविद्यालय का सहयोग रहता है और देशभक्ति आधारित कार्यक्रमों के साथ विद्यार्थियों के लिये चित्र भरो प्रतियोगता, निबघ व आलेख प्रतियोगिता व ज्ञानवर्धक प्रश्नोतरी का आयोजन किया गया जिनका आने वाले समय में विजेताओं को कार्यक्रम आयोजित कर सम्मान किया जायेगा।
समन्वयक,
मो 9413135031

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