सिनेमावालों की इज्जत की पूंजी चौराहों पर नीलामी के इंतजार में है। क्योंकि उनकी दमित कामनाएं दुर्गंध की नई सड़ांध रच रही है। चेहरों से नकाब उतर रहे हैं। सिनेमा की सारी सच्चाई समझने के बावजूद जया बच्चन सिनेमा को चरित्र प्रमाणपत्र बांट रही हैं। भुक्तभोगियों में भन्नाहट है। गटर की सफाई इसीलिए जरूरी है।
-निरंजन परिहार
सिनेमा की गंदगी के नालों में बह रही बदबू लगातार नाक पकड़े रहने को मजबूर कर रही है। ड्रग्स व नशे को कारोबार के बाद अब निर्देशक अनुराग कश्यप द्वारा देह शोषण किए जाने का मामला गरम है। यहां किसी अभागी युवती के देह का दोहन मूल विषय नहीं है। मूल विषय है सिनेमावालों के अंत:करण में छिपी बैठी वासना का। वह वासना, जो दमित कल्पनाओं को आकार देने के लिए काम देने के बहाने किसी जरूरतमंद को बिस्तर पर बिछाने के सपने सजाती हैं, और जीवन की खुशियों और तकलीफों को धुंए में उड़ाने को जिंदगी का अनिवार्य अंग मानती है। इसी कामना की कसक में सुशांत सिंह राजपूत कोई दुर्भाग्यवश मरा हुआ पात्र नहीं, बल्कि एक पूरा धारावाहिक कथा बन जाता है। जिसे पूरा देश और दुनिया तीन महीने से लगातार देखते रहने और उसी में उलझे रहने को शापित है।
और अब, दृश्य यह है कि सिनेमा की थाली में छेद करनेवालों और वालियों की सूची लंबी होती जा रही है। रिया चक्रवर्ती का सलाखों का सुख कुछ दिन के लिए और बढ़ गया है, लेकिन अब नशीले संसार के रिश्ते में रिया के दूर के रिश्तेदारों के नाम भी सामने आ रहे हैं। दीपिका पादुकोण, दीया मिर्जा, सारा अली खान, रकुल प्रीत सिंह, श्रद्धा कपूर सहित नम्रता शिरोड़कर आदि उसी सूची का हिस्सा हैं। आज हर तरफ सिर्फ सिनेमा के संसार की चर्चा है, क्योंकि कभी यह नशे के धुंए में धधकता है, तो कभी काम के बदले देह सुख दान करने के किस्से गढ़ता है। अनुराग कश्यप कांड इसी की ताजा तस्वीर है।
समस्या यही है कि सिनेमा के संसार में काम के बदले देह दान को सरकारी योजना ‘काम के बदले अनाज’ की तरह बहुत सरलता से स्वीकार कर लिया गया है। सरोज खान जैसी जानी मानी नृत्य निर्देशक ने स्वर्ग सिधारने से पहले सांगली में कहा था कि काम के बदले देह शोषण कोई नई बात नहीं है। यह तो सदियों से चला आ रहा है। फिल्म इंडस्ट्री में दुष्कर्म के बाद लड़कियों को छोड़ नहीं दिया जाता, बल्कि उन्हें काम मिलता है और रोजी-रोटी भी मिलती है। सरोज खान के इतना साफ साफ कहने के बावजूद सिनेमा जगत के कुछ लोग उछल उछल कर कह रहे हैं कि बॉलीवुड की थाली गंदी नहीं है। तो, उनकी बेटी भी कल अगर अब किसी संयोगवश सिनेमा में आगे बढ़ने आ गई, तो यही थाली उन्हें भी विरासत में मिलने वाली है। फिर उस वक्त चाहे वे कितने भी ताकतवर क्यों न हो, इस थाली को साफ करने के लिए वे ऐसे कोई सात्विक और सार्थक प्रयास नहीं कर पाएंगे, जिन्हें करने से वे अपने आप को दूसरों के पाप के प्रपंच से निष्कलंक निकाल सकें।
सरोज खान को मरणोपरांत भी आप गलत मानने के लिए स्वतंत्र हैं। लेकिन पायल घोष से पहले कंगना रणौत, टिस्का चौपड़ा, राधिका आप्टे, कल्कि केचलिन, शर्लिन चोपड़ा, स्वरा भास्कर और प्रीति जैन जैसी कई अभिनेत्रियां तो जिंदा हैं, जिन्होंने सिनेमावालों को देह मांगने के मामले में सवालों के घेरे में खड़ा किया है। कंगना ने तो इस मामले को पूरे दबंग अंदाज में उठाया है। रुपा गांगुली संसद परिसर में इसीलिए धरने पर बैठ गई। रवि किशन ने भी सिनेमा में लड़कियों के शोषण का मामला उठाया। मनोज तिवारी भी खुलकर इस मुद्दे पर बोले। लेकिन जया बच्चन के पास इन दिनों फिल्में नहीं है और जाहिर है, उनकी सिनेमा से जुड़ाव की लोकप्रियता खतरे में है। जिससे उबरने के लिए उनके मीडिया मैनेजरों ने माया रची, तो वे खबरों में आ गईं, माहौल में भी छा गईं। लेकिन गलत लोगों का साथ दे रही थीं, इसीलिए, अभिनेता से नेता बनने वाले रवि किशन को अभी सांसद बने सोलह महीने भी नहीं बीते है। लेकिन सिर्फ सोलह शब्दों में ही वे सोलह साल से संसद में बैठी जया बच्चन पर इसलिए बहुत भारी साबित हुए। लेकिन जहां तक साबित होने का मामला है, तो सिनेमा के संसार की सड़ांध सो सराबोर कई चेहरों को निष्कलंक साबित होना बाकी है। सो, देखते रहिए टीवी, क्योंकि सिनेमा की थाली को गंदा करनेवाले कई सुनहरे चेहरे तो अभी और भी बहुत बचे हुए हैं। (प्राइम टाइम)
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)