एकता की मिसाल कायम है आज भी गुलाब शाह बाबा की मजार पर

संतोष गंगेले कर्मयोगी
छतरपुर भारत की धड़कन बुंदेलखंड का ह्रदय कस्बा नौगांव पर्यटन स्थल के रूप में धुबेला म्यूजियम महाराजा छत्रसाल विशाल प्रतिमा तथा शनि देव मंदिर अपने आप में एक पहचान है नौगांव के सामाजिक समरसता इतिहास के रूप में
पूरे हिन्दुस्तान के कोने कोने से हिन्दु-मुस्लिम एकता व सम्प्रदाय सद्भाव की मिशाल बन चुकी , बाबा गुलावशाह की मजार पर हर बर्ष की भाॅति इस बर्ष भी सालाना उर्स का जश्न बड़े धूम धाम से शानदार तरीके से निर्धारित तिथि 8 अक्टूवर को ही मनाया जाता है । इस आयोजन में बड़ी संख्या में बिभिन्न सम्प्रदायों धर्मो व जातिओं के लोग बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते है । इस मौके पर बाबा के दरवार में 24 घंटे धार्मिक कार्यक्रम आयोजित होते है , 8 अक्टूवर को सुबह से ही भक्ति भावना के साथ भक्त लोग अपनी फरियाद लेकर मन माफिक मुरादो की पूर्ति केलिए मन्नते माॅगते है तथा बाबा की मजार पर सिर झुका कर अपनी फरियाद करते है, जो बाबा साहब उनकी मुरादें को पूरा करते है । दोपहर के 12 बजे सामूहिक भण्डारा का आयोजन होता है l पिछले 7 वर्षों से इस आयोजन को नगर और आयोजन समिति ने 8 अक्टूबर से 15 अक्टूबर तक एक जलसे के रूप में मनाने का निर्णय लिया है जो परंपरा प्रभाव सील हो गई है l
नगर नौगाॅव सहित आप पास के बच्चें बूढे महिलायें प्रसाद ग्रहण करती है , नगर के भक्तगण अपने अपने परिवारों के साथ गाना बजाना के साथ चादर बाबा साहब की मजार पर चढाते आ रहे है । भक्तगण जो अपनी मुरादें लेकर बाबा साहब की मजार पर आते हैं , वह अपनी मनमाफिक मुरादों की पूर्ति करते है आज तक बाबा के दरवार से कोई भी सवाली खाली हाथ नही लोटा इसलिए बाबा गुलाव ष्षाह की कीर्ति दूर दूर तक फैली है । इस मजार पर रात्रि के समय बुन्देलखण्ड क्षेत्र के जाने माने कब्बाल गायक कब्बालियों का कार्यक्रम देते है वहंी हिन्दू धर्म के लोग भगवती जागरण कर गीत संगीत व भजनों से बाबा की आत्मा को प्रषन्न करने का प्रयास करते है । इस स्थान पर अब प्रत्येक गुरूवार व ष्षुक्रवार के दिन मेले जैसे आयोजन होता है । इस स्थान की बिषेषता है कि यहां सभी जाति व धर्म के लोग एकत्रित होकर मत्था टेकते है, पल भर में ऐसा लगता है जैसे साम्प्रदायिक सौहार्द का पाठ यदि किसी को पढ़ाना हो तो इस स्थान पर उसे आवष्यक भेजा जावे । ताकि वह यहां एकता को देखकर कुछ सीख सके । स्थानीय लोगों के अनुसार बाबा की मजार से कोई भी खाली हाथ नही लौटा यही कारण है कि हर बर्ष हजरत बाबा गुलाव मजार की कीर्ति दूर दूर तक फैलती जा रही है और हर बर्ष यहां आने बालों की श्रध्दालुओं की संख्या में इजाफा होता जा रहा है । बाबा गुलावषाह के भक्तों व्दारा जो भण्डारा किया जाता है उसमें आगरा के रहने बाले श्री बलवन्त सिंह सरदार व उनका परिवार बाबा साहब पर अटूट श्रद्धा और विश्वास है l
कहा जाता है कि सरदार बलवंत सिंह किसी समय आर्थिक दृष्टि से बहुत कमजोर थे बाबा साहब ने उन्हें आशीर्वाद दिया इससे कुछ ही समय बाद उनका परिवार आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से संपन्न हो गया सुख शांति घर में हो गई तभी से अपने अपने परिवार के साथ भक्तों को प्रसाद वितरण कराते है और मन की शांति केलिए ऐसा कार्य हर बर्ष होता आ रहा है ।
धार्मिक उन्माद बैमनस्या के माहौल के बीच हजरत बाबा गुलाब शाह की मजार सर्वधर्म सौहार्द की अदभूत मिषाल है, हजरत बाबा गुलाब शाह की मजार के साथ भगवान कृष्ण का भी सजदा किया जाता है, भगवान कृष्ण सहित सभी देवी-देवताओं की फोटो चित्र स्थापित है, पूरे हिन्दुस्तान के कौन कौन से यहां आने बाले लोगों में मुस्लिमों से ज्यादा संख्या हिन्दूओं की होती है । नौगाॅव बस स्टैंड से 2 किलोमीटर किमी की दूरी पर ग्राम बिलहरी है, हजरत बाबा गुलाब ष्षाह की मजार प्रवेष व्दार से ही इसकी बिषेष स्थिति स्पष्ट होने लगती है मजार के प्रवेष व्दार में ही राम तथा ऊँ ओंम अल्लाह की इबादत जगह-जगह अंकित है हिन्दू धर्म में कल्याणकारी माने जाने बाले तमाम श्री राधा कृष्ण की चित्र और झलकियां भी दीवालों पर उूकेरे गये है । मजार के अंदर प्रवेश करते ही बड़ी सी घंटे श्री कृष्ण की प्रतिमा लगी है जो मंदिरों में देखने को मिलती है । मजार के अंदर में जहां भी नजर पड़े वही सम्प्रदायिक सौहार्द के प्रतीक चिन्ह मिल जाते है, इसके आगे है हजरत बाबा गुलाबषाह की मजार के चारो ओर मुस्लिम धर्म के अनुरूप नक्कासी है, तो वहीं भगवान श्रीकृष्ण व राम के चित्र नजर आते है । बगल के कमरे में गुलावषाह के जीवन से संबंधित बस्तुयें है, यह वह कुर्सी है जिसमें बाबा गुलाहषाह बिराजा करते थें उनके सोने केलिए इस्माल किया जान बाबा पंलग है श्रध्दालू इन्हे देंखकर श्रध्दा से नत मस्तक हो जाते है । बाबा की मजार परिसर के चारो ओर हिन्दू धर्म के सभी देवी देवताओं के चित्रों की भरमार है । केवल हिन्दू मुस्लिम धर्मो से संबधित चींजो के अलावा यहां पर गुरू नानक तथा साॅई बाबा के चित्र है , बाबा गुलाबषाह की ये मजार सभी धर्मो सौहार्द का संकेत देती है , लेकिन यह बात उतनी ही सत्य है कि बाबा गुलावषाह का जीवन सम्प्रदायिक एकता की मिषाल रहा है नौगाॅव से सटै ग्राम बिलहरी में जन्म बाबा गुलावषाह का जीवन फक्कड़ पन की मिषाल थी नाचने गाने का उन्हे ष्षौक था , इसी ष्षौक के कारण बे नागपुर में पहुॅच गये जहां ताजुद्दीन बाबा से मिले बाबा गुलावषाह को रूहानी ताकत मिली मजार में लम्बे समय से रहने बालों ने बताया कि बाबा गुलावषाह का विवाह शादी होषंगावाद हुई थी तमाम दिक्कतों परेषानियों से जुझते हुये बाबा गुलाबषाह कई सालों बाद बापिस लौटे तो परिवार ने उन्हे अपनाया नही । बे अनाथ आश्रम में रहे , तथा जिस स्थान पर मजार है वही स्थाई रूप से रहने लगे । इसादी दादा ने उनके यहां खुद सेवा की बाबा गुलावषाह के बारे में कहा जाता है कि वे जिससे प्यार करते थें उसे गाली देते थें मारते थें उन्होने जिसके साथ भी ऐसा किया उसका कल्याण हुआ । बाबा को कुछ लोग कृष्ण का अनन्य भक्त भी कहते है । हजरत बाबा गुलावशाह का जीवन चमत्कारों से जुड़ा हुआ है । मजार के पास स्थिति कुआॅ के बारे में कहा जाता है कि इसका पानी इतना खारा था कि लोग इस पीने में इस्तमाल नही करते थें, बाबा गुलावषाह ने उसी कुआॅ का पानी पिया तब से लेकर अब तक कुआॅ का पानी मीठा है , बाबा गुलावषाह की कृपा से खुषहाल होते गये और जिन्होने छल किया उनका नाम व निषान नही रहा है । अब 8 अक्टूवर 1966 में उनके षरीर का हुआ उसी के बाद इस स्थान का भव्य हिन्दू श्रध्दालूओं इस मजार को धार्मिक पर्व के रूपमें उर्स का आयोजन होता चला आ रहा है ।

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