अजमेर । ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती के 810वें सालाना उर्स के लिये झण्डे की रस्म में महज 10 दिन रह गये है और उर्स का झण्डा 29 जनवरी को चढ़ेगाा लेकिन कोरोना के चलते उर्स आयोजन के स्तर को लेकर अभी कोई स्पष्ट दिशा निर्देश सामने नहीं आये है। कोरोना वैश्विक महामारी की बढ़ते असर और निरंतर मिल रहे संक्रमित मरीजों के बीच उर्स का आयोजन किस स्तर पर होगा अभी साफ नहीं है। अजमेर प्रशासन भी राज्य सरकार के दिशानिर्देश के तहत उर्स के आयोजन की बात कह रहा है। उर्स के मद्देनजर प्रशासनिक तैयारियां भी नजर नहीं आ रही हैं। दरगाह कमेटी सहित दोनों अंजुमनों एवं दरगाह दीवान प्रतिनिधि की ओर से भी उर्स कोरोना नियमों के तहत आयोजित करने पर सहमति जताई जा चुकी है लेकिन लाखों लोगों की आस्था का सालाना उर्स किस स्तर का होगा, जायरीनों को शामिल होने दिया जायेगा अथवा नहीं, फिलहाल राज्य सरकार के निर्णय पर निर्णित होगा।
गरीब नवाज के उर्स में दिल्ली के महरौली से कलंदरों का जत्था उर्स की छडिय़ां (निशान) लेकर एक फरवरी को सुबह अजमेर पहुंच जाएगा। इससे पहले 29 जनवरी की शाम पांच बजे रोशनी से पहले भीलवाड़ा का गौरी परिवार परंपरागत तरीके से दरगाह के बुलंद दरवाजे पर उर्स का झंडा चढ़ाएगा। इसके साथ ही उर्स का आगाज हो जाएगा और रजब माह का चांद दिखाई देने पर 2 फरवरी की रात से उर्स की धार्मिक रस्में होंगी। इस दौरान खिदमत का समय भी बदल जाएगा। 2 फरवरी को चांद रात होने के बावजूद यदि चांद नहीं दिखा तो उर्स का आगाज स्वत: तीन फरवरी से होगा जिसमें उर्स की शाही महफिल तथा ख्वाजा साहब की मजार को गुस्ल दिया जायेगा। उर्स के आगाज के साथ ही छह दिनों के लिए जन्नती दरवाजा भी खुला रहेगा। 4 फरवरी को जुम्मा होने से सार्वजनिक नमाज होगी और आठ अथवा नौ फरवरी को छठी की रस्म व छोटे कुल की रस्म अदा की जाएगी और जन्नती दरवाजा बंद कर दिया जाएगा।
चांद के अनुसार शुरू होने वाला उर्स की आखिरी धार्मिक रस्म 11 अथवा 12 फरवरी को बड़े कुल के साथ संपन्न होगी। पिछले कोरोनाकाल में भी उर्स की रस्मों को खादिम समुदाय ने पूरी शिद्दत के साथ निभाया था लेकिन इस बार कम समय रह जाने के बावजूद सरकारी नियमों की अस्पष्टता के चलते स्थिति साफ नहीं है।
